इस पुस्तक के माध्यम से लेखक न केवल वाल्मीकि अथवा भंगी कही जाने वाली जाति को डॉ. आंबेडकर के विचारों से अवगत कराना चाहता है बल्कि इस जाति से डॉ. आंबेडकर के भावनात्मक संबंधों को भी रेखांकित करना चाहता है ताकि वाल्मीकि समाज उन्हें अपने नेता, नायक, प्रेरणास्त्रोत और पथप्रदर्शक के रूप में स्वीकार करे, बता रही हैं पूनम तुषामड़