जिज्ञासु के अनुसार कुछ सुधारवादी हिंदू संगठनों ने चमारों को ‘सूर्यवंशी चॅंवर-क्षत्रिय’ बताने का प्रयास किया था। यह इसी तरह का प्रयास था, जिस तरह का आर्यसमाज ने मेहतर समुदाय को रामायण के रचनाकार कवि वाल्मीकि से जोड़कर वाल्मीकि बना दिया। बता रहे हैं कंवल भारती
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जिज्ञासु की इस किताब से शिव के संबंध में ब्राह्मणों द्वारा फैलाईं गईं बहुत-सी अनर्गल और असंगत बातों का पता चलता है और यह भी कि शिव के स्वरूप का विकृतीकरण इस हद तक किया गया कि उन्हें योगी से भोगी, कामी और गॅंजेड़ी-भॅंगेड़ी बना दिया गया। पुनर्पाठ कर रहे हैं कंवल भारती
मिथकीय ग्रंथ रामायण में वर्णित रावण के संबंध में बौद्ध धर्म से लेकर गोंड परंपरा तक में अनेक व्याख्याएं हैं। इन व्याख्याओं के निहितार्थ व मनुवादी समाज की वैचारिकी को चुनौती देती चंद्रिकाप्रसाद जिज्ञासु की पुस्तक ‘रावण और उसकी लंका’ का पुनर्पाठ कर रहे हैं कंवल भारती
जिज्ञासु जी ने अपनी किताब “लोकशाही बनाम ब्राह्मणशाही” में लिखा कि प्रशासनिक ब्राह्मणशाही बहुजनों को उपर उठने नहीं देती, और समाजी ब्राह्मणशाही इन्हें समाज में रगड़ रही है। जिस ब्राह्मणी धर्म ने इनका सर्वस्व अपहरण करके इनकी यह दयनीय दशा बनाई है, उसी के ये अनन्य भक्त हैं। बता रहे हैं कंवल भारती
यह कहना कि रैदासजी पर हमला हुआ और उनके शरीर से सहस्र सूर्यों जैसा प्रकाश निकला, तो इसका अर्थ यह है कि उनको जिंदा जलाया गया था। अगर ऐसा हुआ था, तो उस हादसे में मीराबाई पर कोई आंच क्यों नहीं आई थी? पढ़ें, कंवल भारती की समीक्षा
किताब के ‘निवेदन’ में जिज्ञासु ने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। बाबासाहेब के लाखों अनुयायियों ने बौद्ध बनकर कबीर और रैदास आदि संतों से अलगाव बना लिया था। बहुत से कबीर और रैदास पंथ के साधु भी बौद्ध भिक्षु बन गए थे, जिसके कारण, कबीर और रैदास आदि संत उनकी दृष्टि में अप्रासंगिक हो गए थे। कंवल भारती की समीक्षा
चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु ने लिखा कि कम्युनिस्टों का संगठन जनतांत्रिक समता का सिर्फ ढिंढोरा पीटता है, लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि भारत एक धर्म प्रधान देश है। यहां का पूंजीवाद कोरा पूंजीवाद नहीं है, वरन् धर्म की ओढ़नी ओढ़े हुए है। स्मरण कर रहे हैं कंवल भारती