गंभीर अध्येता वीर भारत तलवार महाराष्ट्र के नवजागरण की विशिष्टाताओं को रेखांकित करते हुए बता रहे हैं कि यहां नवजागरण की तीन समानांतर परंपराएं रही हैं। तीनों अपने आप को महाराष्ट्र की संत परंपरा के साथ किसी न किसी रूप में जोड़ती हैं। पहली दो परंपराएं कमोवेश भागवत धर्म के साथ अपने को जोड़ती है, जबकि तीसरी परंपरा फुले की है, जो ब्राह्मणवाद को खारिज करती है
Veer Bharat Talwar, while underlining the distinguishing characteristics of the renaissance movement in Maharashtra, contends that it had three distinct streams. All the three were linked in one way or the other with the saint-poet tradition. While two of them drew sustenance from the Bhagwat Dharma, one was inspired by Phule and rejected Brahmanism outright
इस लेख में ओमप्रकाश कश्यप 1857 के संग्राम, उसकी पृष्ठभूमि और उसकी असफलता के कारणों की बहुजन नजरिए से व्याख्या कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में वे ब्रिटिश सत्ता, भारतीय राजे-महराजों, नवाबों और उच्च जातियों के साथ बहुजनों के रिश्तों और संघर्षों के स्वरूप को भी विस्तारसे प्रस्तुत कर रहे हैं, ओमप्रकाश कश्यप
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प्रेमचंद आधुनिक हिंदी के पहले लेखक थे जिन्होंने स्पष्टतया ब्राह्मणवादी पाखंड को बार-बार अपनी रचनाओं में चिन्हित करने की कोशिश की है। हिन्दुओं की वर्ण-व्यवस्था पर प्रश्न उठाने का साहस उनके समय के किसी अन्य हिंदी लेखक ने नहीं किया था। उन्होंने यह किया। आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की विशिष्टता को रेखांकित कर रहे हैं, प्रेमकुमार मणि
कांशीराम का मानना था कि 24 सितंबर 1932 को गांधी ने आंबेडकर को पूना पैक्ट के लिए बाध्य करके अनुसूचित जातियों की राजनीति को चमचा युग में ढकेल दिया। कांशीराम की एकमात्र किताब चमचा युग पूना पैक्ट के बाद की दलित राजनीति के चरित्र को सामने लाती है। इस किताब की महत्ता पर रोशनी डाल रहे हैं, अलख निरंजन :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
डॉ. आंबेडकर और गांधी की टकराहट जगजाहिर है। उनके बीच अनेक मुद्दों पर तीखे मतभेद थे, लेकिन समय-समय पर संवाद भी कायम हुआ। अंततोगत्वा डॉ. आंबेडकर की बात को संविधान में स्वीकृति मिली। लेकिन डॉ. आंबेडकर के अलावा अनेक बहुजन विचारक हैं, जिनके विचारों को जानना-समझना वंचित वर्गों की मुक्ति के लिए जरूरी है :
डॉ. राधाकृष्णन वर्ण-जाति व्यवस्था के कट्टर समर्थक हैं। डॉ. आंबेडकर और राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें पोगापंथी धर्म-प्रचारक कहा है। बहुजन नायक जोतिराव फुले के नाम पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाना चाहिए। उनका स्थान सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन कैसे ले सकते हैं? कंवल भारती का विश्लेषण :
तुलसीराम बहुजन-श्रमण चिंतन परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी रहे हैं। उनका चिन्तन और जीवन बहुजनों के लिए समर्पित था। उनके चिन्तन, जीवन और रचनाओं पर प्रकाश डाल रहे हैं दलित लेखक डॉ. अलख निरंजन :
An important link in the Bahujan-Shraman tradition, Tulsi Ram dedicated his entire life and intellect for the cause of the Bahujans. What stood out in his thoughts, life and creations? Dalit author Alakh Niranjan finds out
भारत के वंचित तबकों को शिक्षा से वंचित करके हजारों वर्षों तक गुलाम बनाकर रखा गया। सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा को गुलामी से मुक्ति का सबसे बड़ा हथियार बनाया। स्त्रियों एंव दलितों-बहुजनों को शिक्षित करना अपने जीवन का मिशन बना लिया। आधुनिक भारत की प्रथम शिक्षिका के व्यक्तित्व के विविध आयामों का विश्लेषण कर रहे हैं, अभय कुमार :
Central to the enslavement of the India’s deprived communities was the denial of education to them. Savitribai turned education into a weapon for freeing people from slavery. She made it her life’s mission to educate women and Dalitbahujans. Abhay Kumar explores the personality of modern India’s first lady teacher
धर्म की राजनीति, शोषण पर आधारित सामाजिक संबंधों को बनाये रखना चाहती है और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों के खिलाफ है. राम पुनियानी मानते हैं कि राजनीति के इस ब्रांड को शंकर ने दार्शनिक आधार प्रदान किया है
Politics in the name of religion is aimed at maintaining cruel, exploitative social relations and is opposed to liberty, equality and fraternity. Shankar provides the philosophical ground for this brand of politics, writes Ram Puniyani
अमेरिका और विश्व के लिए लिंकन की धरोहर, जॉर्ज वॉशिंगटन के बराबर की है। वाशिंगटन दूसरे अमेरिकी थे जिनका प्रशंसक महात्मा फुले थे। अगर वॉशिंगटन की धरोहर उत्पीडऩ के खिलाफ आजादी की प्रेरणा की है तो लिंकन की धरोहर गुलामी से मुक्ति के सम्मान की है
Lincoln’s legacy for America and for the world lives beside that of George Washington, the other American Mahatma Phule admired. If Washington’s legacy is about the inspiration of liberty over oppression, Lincoln’s legacy is about the honour of emancipation from slavery