मेरा मत है कि दलित युवतियों के साथ होने वाले अन्याय को रोकने के लिए न्याय और क़ानूनी कार्यवाही कि मांग करने के साथ साथ हमें कुछ अन्य महत्वपूर्ण मांगें भी करनी चाहिए, जिनसे दलित समाज और दलित महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें। बता रही हैं पूनम तुषामड़
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करीब 8 वर्षों के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने मिर्चपुर के दलितों को इंसाफ दिया है। 33 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया तथा इनमें से 12 को आजीवन उम्रकैद की सजा मुकर्रर की गयी। साथ ही पीड़ित दलितों को समुचित मुआवजे व पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को निर्देशित किया है। एससी/एसटी एक्ट के तहत दी गयी सजा अबतक की सबसे बड़ी सजा है। एक खबर :
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केजीएमयू लखनऊ के गोल्ड मेडलिस्ट डॉक्टर विवेक कुमार दिल्ली की किसी भी एमसीडी के सबसे पढे लिखे डॉक्टरों में से एक हैं। लेकिन एक तबके के डॉक्टरों ने उनको जाति के नाम पर गालियां दीं, उनके साथ मारपीट की। पीड़ित ने शिकायत की तो सियासी रुतबे वाले जातिवादी गठजोड़ ने उनका ट्रांसफर करा दिया और वेतन रोक दिया। फारवर्ड प्रेस की खास रिपोर्ट :
1972 में शुरू हुआ दलित पैंथर्स आंदोलन महाराष्ट्र में दलितों के असंतोष और आक्रोश की सबसे मुखर अभिव्यक्ति थी। इस संगठन के बैनर तले दलितों ने सीधे जातिगत अत्याचार का प्रतिकार किया। दलित पैंथर्स के संस्थापकों में से एक जे.वी. पवार से ‘द वायर’ के लिए सिद्धार्थ भाटिया के साक्षात्कार का हिन्दी अनुवाद
In conversation with J.V. Pawar, one of the founders of the Dalit Panthers
ऐसे समय में जब एसी/एसटी समुदायों पर अत्याचार की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है, उस समय क्या एसी/एसटी एक्ट को कमजोर बनाया जाना चाहिए? तर्क यह दिया जा रहा है कि इस एक्ट का दुरूपयोग होता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के प्रभावों का विश्लेषण कर रहे हैं कांचा इलैया शेपर्ड :
When the atrocities against SCs and STs are on the rise, should the Act that is meant to prevent those atrocities be weakened – even if the argument for doing so is that the Act is being misused? Kancha Ilaiah Shepherd analyzes the ramifications of the Supreme Court’s order
आजादी के सात दशक बाद भी दलितों को अस्पृश्यता का दंश झेलना पड़ रहा है। बीते शनिवार को इलाहाबाद में कानून की पढ़ाई करने वाले छात्र दिलीप सरोज की हत्या ऊंची जाति के युवाओं ने केवल इसलिए कर दी कि उसका पांव उनके शरीर से स्पर्श कर गया था
Seven decades after independence, Dalits are still fighting untouchability. Last Saturday, upper-caste youth killed Dilip Saroj, a Dalit student, because his feet happened to touch their bodies
संघ परिवार की प्रतिक्रियावादी एंव प्रतिगामी संस्कृति का मूल तत्व ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी पतनशील संस्कृृति है। इन पतनशील संस्कृतियों के गठजोड़ का घना अंधकार भारतीय समाज पर छा रहा है। इस अंधकार को भेदने और वैकल्पिक प्रगतिशील मानवीय संस्कृति के सृजन हेतु मार्क्सवाद और आंबेडकर की विचारधारा ही हमारी मशाल है, इस आह्वान के साथ जनवादी लेखक संघ का नवां राष्ठ्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ। प्र्स्तुत है सम्मेलन की रिपोर्ट
Forward Press is both a website and a publisher of books on issues pertaining to Dalits, Adivasis and Other Backward Classes. Follow us on Facebook and Twitter for updates
सविता अली हरियाणा के पानीपत जिले की हैं और बाबा साहब आंबेडकर को आदर्श मानती हैं। वह बिहार में दलित महिलाओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराती हैं, जहां दलित महिलायें सबसे अधिक अत्याचार की शिकार होती हैं। न्यायपालिका में ऊंची जातियों के वर्चस्व के कारण वे न्याय से वंचित रह जाती हैं। पढ़ें सविता अली की विशेष बातचीत :
For Savita Ali, who hails from Haryana’s Panipat district, Babasaheb Ambedkar is the ultimate role model. She provides legal assistance to the Dalit women in Bihar. She says they are deprived of legal recourse because upper castes dominate the judiciary