नरेंद्र वाल्मीकि व्यवस्था परिवर्तन के लिए अपनी कविता को हथियार बनाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के परिणाम स्वरूप ही दमित-वंचित समुदाय अपने दायभाग को प्राप्त कर सकता है। उनका स्पष्ट मानना है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का नारा लगाने वालों ने जितना गरीबों को अपमानित और प्रताड़ित किया है, उतना किसी अन्य ने न किया हो। बता रहे हैं कर्मानंद आर्य