दलित-बहुजन लेखक जब लिखेगा तो पुष्प वर्षा तो होगी नहीं, उसके शब्द तो आग उगलेंगे ही। जिनकी मर्यादाओं को मनुवादियों ने पहले ही तार-तार कर रखा हो, उनसे मर्यादित शब्द की अपेक्षा करनी भी नहीं चाहिए। नामदेव ढसाल के शब्द भी किसी मर्यादा का पालन नहीं करते थे। लेकिन वे दलित पैंथर से शिव के सैनिक बन गए। इसकी वजह क्या रही, बता रहे हैं मोहनदास नैमिशराय :