ज. वि. पवार ने इस आंदोलन को आंबेडकर के बाद दलित आंदोलन का स्वर्णकाल माना है। इस संगठन के महासचिव होने के कारण उन्होंने इससे संबंधित दस्तावेजों, पत्राचार तथा महाराष्ट्र सरकार के अभिलेखागार में रखे गए दस्तावेजों का भरपूर प्रयोग इस पुस्तक में किया है। यही कारण है कि यह बहुत प्रामाणिक बन गई है। पढ़ें, स्वदेश कुमार सिन्हा की समीक्षा