बहुजन साहित्य की सबसे बड़ी समस्या ‘पहचान’ की है। चूंकि इसमें दलित, आदिवासी व महिला के अतिरिक्त अन्य पिछड़ी जातियों के साहित्य को भी शामिल किए जाने की अपेक्षा है इसलिए ओबीसी साहित्य की पृथक पहचान क्या हो और यह तय हो जाने के बाद सबकी समेकित पहचान क्या हो, इन मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श जरूरी है