अदालत का मानना है कि यदि विश्वविद्यालय को इकाई मानकर रोस्टर बनाया गया तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा। जबकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान इन्हीं अनुच्छेदों के तहत किया गया है। सवाल उठता है कि यदि विभाग को इकाई माना गया तो आरक्षित वर्गों के लिए 49.5 फीसदी आरक्षण कैसे मिलेगा?
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यदि 200 प्वायंट के आधार पर रोस्टर बनेगा तब निश्चित तौर पर पचास फीसदी सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों को लाभ मिलेगा। परंतु अब यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर विभागवार आरक्षण का प्रावधान होगा तो आरक्षित वर्ग के लिए कोई पद नहीं होगा
सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। जब केंद्र सरकार तमाम आंकड़े दे रही है कि विश्वविद्यालयों में आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि विभागवार आरक्षण का रोस्टर बनाया जाय, इस बात का परिचायक है कि सुप्रीम कोर्ट ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के हितों की उपेक्षा की
जिस तरह केंद्र सरकार ने एससी/एसटी एक्ट मामले में कमजोर पैरवी की थी और तदुपरांत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कारण यह एक्ट कमजोर हुआ था, उसी प्रकार से विश्वविद्यालयों में आरक्षण के मामले में भी सरकार की ओर से कमजाेर पैरवी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसकी मूल वजह यही है
मध्य प्रदेश में दलितों पर अत्याचार करने का आरोप दो आरोपियों को महंगा पड़ा। उन्हें निचली अदालतों ने बरी कर दिया था। वे जिला जज पद के लिए क्वालिफाई भी कर गए। परंतु हाईकोर्ट ने उन्हें साफ कहा कि बरी होने का मतलब चरित्रवान होना नहीं होता
केंद्र सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संशोधन विधेयक लाने जा रही है। इस संबंध में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सपा सांसद धर्मेंद्र यादव को आश्वस्त किया है
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीते 25 नवंबर को मान्यता प्राप्त अशासकीय कॉलेजों में मानदेय पर कार्यरत 700 से अधिक सहायक प्रोफेसरों को नियमित करने और नियुक्ति पत्र देने के कार्यक्रम को टाल दिया है। इससे पहले सरकार के इस निर्णय पर विरोध जताया जा रहा था कि सरकार आरक्षण को दरकिनार कर ऐसा करने जा रही है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
भारत राज्यों का एक संघ है। अपवादों को छोड़कर यहाँ का नागरिक भारत के किसी भी हिस्से में जाकर अपना जीवन यापन कर सकता है। यानी किसी भी राज्य में जाकर सरकारी या प्राइवेट नौकरी करने को स्वतंत्र है। डोमिसाईल जैसी नीति, जो अन्य प्रदेशों के छात्रों के साथ भेदभाव पूर्ण रवैय्या अपनाता है, भारतीय संघवाद की आत्मा के खिलाफ है। बिहार में डोमिसाईल नीति लागू होने का असर अन्य राज्यों पर भी पड़ सकता है
Any domicile policy that discriminates against residents of other states goes against the grain of Indian federalism. Moreover, if Bihar implements a domicile policy, it may affect other states too