निर्देशक ऋतेश कुमार के मुताबिक, वे कहानी को यथासंभव उसके समयकाल और परिवेश में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कहानी 1962 में छपी थी। 2020 में 1960 के आसपास के समय को दिखाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है
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जब मैं यह फिल्म देख रही थी तब मेरे जेहन में डॉ. आंबेडकर के विचार चल रहे थे। स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री के रूप में उन्होंने 9 अप्रैल 1948 को संविधान सभा के समक्ष हिन्दू कोड बिल का मसविदा प्रस्तुत किया। इसमें महिलाओं के सवाल महत्वपूर्ण थे। पूनम तुषामड़ की समीक्षा
बॉलीवुड के तर्ज पर अब बहुजनवुड की शुरुआत की गयी है। इसे लांच करते हुए चर्चित लेखिका अरुंधति राय ने कहा कि बहुजनों की संस्कृति और उनके सवालों के डॉक्यूमेंटेशन के लिए यह एक जरूरी पहल है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए
ब्राह्मणों को लगा कि उन्हें कटघरे में खड़ा किया गया है। बिहार की राजधानी पटना जहां कथित तौर पर समाजवादी विचारधारा के नीतीश कुमार की सरकार है, फ़िल्म दूसरे दिन ही हटा दी गई। दूसरी ओर प्रबुद्ध वर्ग के दलित चिंतकों ने दलित उद्धारक के रूप में ब्राह्मण नायक को महिमामंडित करने का विरोध किया। सुधा अरोड़ा की समीक्षा
भारतीय सिनेमा के सौ साल में ‘काला’ अपने ढंग की पहली फिल्म है। न सिर्फ अभिनेयता, संगीत, कहन शैली और कलात्मक दृश्यों के प्रभावी और मनोरंजक छायांकन-बुनावट के कारण, बल्कि अपने बेलाग सामाजिक कथ्य और नई राजनीतिक रणनीति के पेशकश के लिए भी। फिल्म बहुत ही निडरता के साथ धार्मिक उन्माद की राजनीति पर ठीक वैसे ही चोट करती है जैसे पेरियार ने अपने समय में मनुवादी ग्रंथों को सरेआम जलाकर किया था। अश्विनी कुमार पंकज की समीक्षा :
‘Kaala’ is the first film of its kind in 100 years of Indian cinema. Not just for the acting, music, storytelling, the artistic and entertaining cinematography and editing, but also for its true portrayal of society and the new political strategies on view. It attacks a politics of religious frenzy just as Periyar did by burning Manuvadi texts
सिनेमा के क्षेत्र में आशुतोष गोवारिकर इस देश के नये इतिहासकार और पुरातत्वविद हैं, जो अपनी फिल्म’ के जरिए आदिवासियों और मूलवासियों की वही छवि पेश करने जा रहे हैं, जो वेद-पुराणों और मनुसंहिता ने सदियों पहले बनाई है। यह फिल्म ब्राह्मणवादी दक्षिणपंथियों द्वारा इंसानी सभ्यता के साथ किया जाने वाला सबसे संगीन अपराध है
Gowariker is the country’s newest “historian and archaeologist” who wants to present through his films the same image of tribals and indigenous inhabitants that was built by Vedas, Puranas and Manusmriti centuries ago. This film is a crime committed by Hinduvadi rightists against human civilization
12 अगस्त को प्रदर्शित होने वाली फिल्म मोहेंजो-दारो को राजन कुमार का यह लेख भारत की आदिवासी परंपरा और इतिहास पर शातिर हमला बता रहा है। इस फिल्म को बैन किये जाने की मांग कर रहा है। सवाल है कि अपनी मनमाना व्याख्याओं के साथ अच्छी फिल्मों पर कैंची चलाने वाला सेंसर बोर्ड इस इतिहास विरोधी फिल्म को रिलीज होने से रोक सकेगा
Rajan Kumar says that Mohenjo Daro, to be released on 12 August, is a shrewd attack on India’s tribal tradition and culture and should be banned. Why the Censor Board, which makes cuts and alterations in films at the drop of a hat, did not stop the release of this anti-history film is anybody’s guess
फिल्म की चेतावनी है कि अंतरजातीय विवाह करने वाले बहादुर लोग महानगरों में भी महफूज़ नहीं हैं। ऐसे विवाहों या प्रेम संबंधों को अंजाम देने वालीं सवर्ण औरतों को होशियार रहना चाहिए –मायके से आये रिश्तेदारों के रूप में साड़ी, गहने और गोंद के लड्डू लिए, कातिल उन तक आसानी से पहुँच सकते हैं
Decades ago, Ambedkar had said that the rural Indian setup was inherently anti-Dalit. The Dalit castes cannot live with dignity in the villages. Nagraj Manjule underlines this horrendous truth in all its ugliness
इस फिल्म में आप मनमोहन देसाई,आदित्य चोपड़ा, करन जोहर, माजिद मजीदी,अडूर गोपालकृष्णन और आनंद पटवर्धन जैसे अलग-अलग फिल्म– निदेशकों को एक साथ देख लेते हैं
Nagraj Manjule has shown that issues of caste, gender and oppression aren’t just documentary stuff. Imagine a film made jointly by Manmohan Desai, Aditya Chopra, Karan Johar, Majid Majidi, Adoor Gopalakrishnan and Anand Patwardhan
फिल्म आज के समय में उस दूरदृष्टा के विचारों की प्रासंगिकता पर केंद्रित होगी। ”शिक्षित हो, संगठित हो और आंदोलन करो’’, आंबेडकर कहते थे। ‘जयंती’ निश्चित तौर पर ‘शिक्षित’ करेगी
The film will reflect on our times and the relevance today of the visionary’s thoughts. “Educate, Organize and Agitate”, Dr Ambedkar used to say. Jayanti is sure to “educate”