रूपाली बताती हैं कि वह स्वयं दलित समुदाय से आती हैं और उनके सामने बड़ी चुनौती यही थी कि कोई संसाधन नहीं था। एक टीशर्ट से जो पैसे मिलते उससे दूसरा टीशर्ट और फिर इस तरीके से इस उद्यम को आगे बढ़ाया है
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शैली किरण बता रही हैं कि यशपाल की रचनाएं वैविध्यपूर्ण व बहुआयामी होने के बावजूद कई सवालों को अनसुलझा छोड़ जाती हैं। जाहिर तौर पर ये वही सवाल हैं, जो जोतीराव फुले, सावित्रीबाई फुले और डॉ. आंबेडकर न केवल लोगों के सामने लेकर आते हैं बल्कि उनके जवाबों के लिए मुक्ति का मार्ग भी बताते हैं
फुले और आंबेडकर की कला-साहित्य दृष्टि भी इन्हीं चारों सूत्रों पर आधारित है। यही कारण रहा कि प्रचलित सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यता की संरचना को वे प्रभावी तरीके से भेदने में सफल हुए। साथ ही वैचारिक सर्जनशीलता के नये मार्ग भी प्रशस्त किये। बता रहे हैं सतीश पावड़े
आगामी 24 फरवरी को हैदराबाद में चार महिलाओं को ईश्वरीबाई स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इनमें विजय भारती भी शामिल हैं जिन्होंने धनंजय कीर द्वारा लिखित जोतीराव फुले की जीवनी एवं डॉ. आंबेडकर के संपूर्ण वांग्मय के चार खंडों का तेलुगू में अनुवाद किया है। फारवर्ड प्रेस की खबर
हिन्दू धर्म में रहते हुए अछूतों को समानता दिलवाने की कोई संभावना नज़र न आने पर, आंबेडकर ने उस संहिता के दहन का नेतृत्व किया, जो इस धर्म को एक बनाती थी. गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते हैं कि यह कदम उनके इस निर्णय का प्रतीक था कि वे एक हिन्दू के रूप में मरना नहीं चाहते
Having exhausted all possibilities of achieving equality for the Untouchables within Hinduism, Ambedkar led in the burning of the code that held the religion together. This act symbolized his decision that he would not die a Hindu, writes Goldy M. George
जेएनयू में छात्र आंदोलनरत हैं। इसकी वजह विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा थोपे जा रहे नये नियम हैं। इस संबंध में दलित-बहुजन छात्र-छात्राओं की प्रतिक्रिया के बारे में बता रहे हैं नवल किशोर कुमार
ईसा ने जन्म लेने के लिए किसी पुरोहित या राजा का घर नहीं चुना. वे एक बढ़ई के घर में जन्मे थे और अपनी युवा अवस्था में बढ़ई के रूप में ही काम करते. उन्होंने न तो सत्ता को चुना, न धन को, और ना ही रुतबे को. यह बाइबिल के पहले अध्याय की इस शिक्षा के अनुरूप था कि हर पुरुष और स्त्री में ईश्वर की छवि होती है
Jesus did not choose to be born into a family of priests or kings. He chose to be born into the family of a carpenter and would himself have worked as a carpenter in his youth. He chose neither power, nor wealth nor status, reinforcing what the Bible says in its very first chapter – that every man and woman is created in the image of God
फुले, पेरियार और आंबेडकर ने ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोडने के लिए ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति को खारिज किया और नई विवाह पद्धति की शुरूआत की। फुले ने सत्यशोधक विवाह पद्धति, पेरियार ने आत्माभिमान विवाह पद्धति और आंबेडकर ने हिंदू कोड़ बिल में नए तरह की विवाह पद्धति का प्रावधान किया। बता रहे हैं सिद्धार्थ :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
इस शब्द के उपयोग से अछूतों के आंदोलनों में बडी संख्या में अन्य पिछडा वर्ग के लोग भी शामिल हो जाते हैं, जिससे उनकी ताकत बढ जाती है। अगर इन्हें अनुसूचित जाति के नाम से संबोधित किया जाए तो इनके आंदोलन कमजोर हो जाएंगे। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
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भारत में शक्ति के स्रोतों पर शोषक वर्ग का कब्जा है। जबकि विश्व स्तर पर परिस्थितियों में उल्लेखनीय बदलाव आया है। वह चाहे अमेरिकी अश्वेत हों या अस्ट्रेलिया या फिर दक्षिण अफ्रीका के मूलनिवासी, संसाधनों पर सभी की हिस्सेदारी बढ़ी है। लेकिन भारत में यह बदलाव क्यों नहीं हो रहा, बी.पी. मंडल की जयंती के मौके पर बता रहे हैं एच. एल. दुसाध :