इस पत्रिका के दो अवदान तो इतिहास में दर्ज हो गये हैं- एक महिषासुर के नायकत्व की खोज और दूसरा बहुजन साहित्य के रूप में साहित्य की एक नई प्रस्तावना। ये दो मील के पत्थर फॉरवर्ड प्रेस के हिस्से में हैं
Two contributions of this magazine are truly historic – one, discovering the real Mahishasur and second, introducing Bahujan literature as a new literary stream. These are two milestones in its so far
पुस्तक में लेखिका का एक प्रमुख तर्क यह है कि मुख्यधारा के हिंदी लेखकों की सामान्य धारणा के विपरीत, दलित साहित्य का उदय 1980 के दशक में दलितों की आत्मकथाओं और कथा साहित्य के प्रकाशन से बहुत पहले हो गया था। दलितों ने सन् 1920 के दशक में ही हिन्दी साहित्य में अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी थी
Dalits had found a voice of their own in Hindi literature as early as the 1920s