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इस काल्पनिक पत्र के माध्यम से सिद्धार्थ बता रहे हैं कि कांशीराम के अनुसार राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का
राजनीति में वैचारिक स्पष्टता जरूरी है। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार के साथ प्रकाश आंबेडकर की विस्तृत बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि बसपा और बामसेफ की राजनीति शुरू से ही फेल थी। ये दोनों आंबेडकराइट आइडियोलॉजी से कभी जुड़े नहीं। प्रस्तुत है इस लंबेी बातचीत का संपादित अंश
हम हिंदू नहीं हैं, हम भील और गोंड भी नहीं हैं। हम आदिवासी हैं। सरकार 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड और कॉलम निर्धारित करे। यह मांग 25 फरवरी 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकजुट हुए आदिवासियों ने की। इस मौके पर बामसेफ के खिलाफ भी आवाज उठी
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
आगामी 9 दिसंबर 2018 को शिवपाल यादव और वामन मेश्राम ने संयुक्त रूप से लखनऊ में महारैली का आह्वान किया है। इसके लिए जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :
हम देश भर के बहुजन समाज के लोगों व संगठनों से अपील कर रहे हैं कि वे अपने बैनर, पोस्टर व अस्तित्व को बनाए रखते हुए एक छतरी के नीचे आएं, ताकि बहुजन समाज की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी जा सके। बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम से विशेष बातचीत :
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दीना भाना तो बाबा साहब आंबेडकर जी के बारे में जानते ही थे। तो उन्होंने बाबा साहब की लिखी किताब एनिहिलेशन अॉफ कास्ट (जाति का विनाश) मान्यवर कांशीराम जी को दी। उन्होंने उस किताब को रात में तीन बार पढ़ा। तीन बार पढ़ने के बाद उन्होंने यह समझा कि बाबा साहब आंबेडकर जाति-भेद का खात्मा क्यों करना चाहते थे। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में मान्यवर के सहयोगी रहे ए. आर. अकेला :
Looking at the changing face of print media led us to make the painful decision to shut down the print edition of the magazine. This was the child we gave birth to and had raised in the face of huge obstacles. Now we had to stifle it
हमें पत्रिका के मुद्रित संस्करण को बंद करने का कष्टदायक निर्णय लेना पड़ा। यह एक ऐसा बच्चा था, जिसे हमने जन्म दिया था और बड़ी कठिनाईयों से बड़ा किया था। अब हमें इसका गला घोंटना था
A bare reading of the collection of his speeches is enough to see why Kanshiram, during the initial days of his movement, laid equal stress on collecting resources, motivating people, sharpening organisational skills and developing Bahujan media
भाषणों के संकलन के अध्ययन के दौरान यह महसूस किया जा सकता है कि कांशी-राम अपने शुरू के दिनों में आंदोलन के तरीके विकसित करने, संसाधन जुटाने, लोगों को प्रेरित करने और बहुजन मीडिया की जरूरत को एक साथ, बार-बार क्यों उठाते हैं।
Originally launched in 1973 in Pune by Kanshiram and D.K. Khaparde, the All India Backward (SC, ST, and OBC) and Minority (Converted) Communities Employees’ Federation, known as BAMCEF. Today there are at least three major organizations, all claiming to be ‘the’ BAMCEF – Editor
पुणे में सन् 1973 में कांशीराम और डीके खापर्डे द्वारा स्थापित आल इंडिया बेकवर्ड (एससी, एसटी व ओबीसी) एण्ड माइनोरिटी (धर्मांतरित) एम्पलाईज फेडरेशन जिसे बामसेफ के नाम से जाना जाता है। आज यह तीन प्रमुख गुटों में विभाजित है -संपादक
Now, the party is scouting for alternative names. Be that as it may, BAMCEF’s decision to float a political party has raised many eyebrows. Whether the new outfit provides a non-BJP, non-Congress political alternative to the Dalits and Bahujans of India or keeps its agenda limited to opposing the BSP remains to be seen.
बामसेफ दवारा गठित नई पार्टी ने बहुत सारे सवाल राजनीतिक हलकों में खड़े कर दिए हैं। मसलन, क्या यह नई पार्टी गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई राजनीति करते हुए भारत के दलितों और ओबीसी को एक सशक्त राजनीतिक विकल्प देगी या फिर सिर्फ बहुजन समाज पार्टी का विरोध के लिए जानी जाएगी?