सच्चाई तो यह है कि ब्राह्मणवाद के वाहक अगर ओबीसी पाए जाते हैं, तो उसके विरोध में भी बड़ी संख्या में ओबीसी रहे हैं और हैं। यह ओबीसी साहित्य ही तो है, जिसमें सुदामा के पैर धोने की बात को तमाम लोग नकारने लगे हैं। गीता के बारे में भी यह समझने लगे हैं कि ये कृष्ण की बोली या लिखी नहीं है। वो व्यास की करतूत है। उसी में पशुपालन को वैश्य कर्म बताया गया। यह बात उजागर जहाँ की गई है वो भी तो ओबीसी साहित्य है कि गीता को कृष्ण ने नहीं लिखा।