एक सभ्य समाज में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का मतलब होना चाहिए सभी को, अपना मत हर संभव तरीके से, समाज के सामने रखने का साधन मुहैया करवाना। और दूसरों के मत पर तर्क करने, जिरह कर सकने का माहौल बनाए रखना। क्या हमारा लोकतंत्र और हमारी पत्रकारिता सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गुलामी झेल रहे लोगों को यह सुविधा देती है?