भारतीय राजनीति में यह देखा गया है कि जब दलित, पिछड़े, आदिवासी बहुजन अपनी पहचान को स्थापित कर साधन-संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी की तरफ बढ़ने लगते हैं, तब सवर्ण-अशराफ हिन्दू-मुस्लिम राजनीति की आंच तेज़ करने लगते हैं। बता रहे हैं डॉ. अयाज अहमद
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हिंदुत्ववादी ताकतें ऐसा समझती हैं कि लड़कियों के साथ हिजाब के नाम पर छेड़-छाड़ और जबर्दस्ती करने से मुसलमानों को उग्र होने पर मजबूर किया जा सकता है। हिंदुत्ववादी ताकतों की एक बैचैनी यह भी है कि आम हिन्दू भी अब इस तरह के मामलों से उबने लगे हैं। पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर का विश्लेषण
जोतीराव फुले और डॉ. आंबेडकर के आंदोलन की बदौलत ही आजाद देश के तालीमी इदारे (शिक्षण संस्थाएं) सभी जातियों और धर्मों के लिए खोल दिए गए। इसके बावजूद आज भी वर्चस्ववादी ताकतें नहीं चाहती हैं कि शोषित वर्ग को शिक्षा मिले। बता रहे हैं अभय कुमार
अभी पसमांदा का जो सवाल है तो उसमें मुस्लिमों को जिस तरह से आरएसएस और भाजपा टारगेट कर रही है, तो वैसी स्थिति में भी हम इस सवाल को ज़िंदा रखे हैं। लेकिन ऐसे में मुख्य खतरे से लड़ना ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है। गौर करने की बात यह है कि इन हालात में भी ज़्यादातर टारगेट पसमांदा मुसलमान यानी गरीब और पिछड़े मुसलमान ही हो रहे हैं। पढ़ें, पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी का यह साक्षात्कार
व्यावहारिक अनुभव और ताप में पगे लेखक शमोएल अहमद का अनुभव जातिवाद, भ्रष्टाचार आदि सडाध के प्रति पाठकों में क्षोभ पैदा करता है। मार्च लूट का प्रसंग हो या कुर्सी को गंगाजल से पवित्र करने का– ये घटनाएं सिस्टम की बर्बरता को बतलाती हैं कि हमारी सोच से आज भी किस तरह से मध्ययुगीन बर्बरता अभी नहीं गई है। अरुण नारायण की समीक्षा
राही मासूम रज़ा का उपन्यास ‘ओस की बूंद’ इस बात की तसदीक करता है कि पसमांदा मुसलमानों को जो राजनीतिक विरासत मिली, वह दरअसल उनकी ज़मीन से नहीं पैदा हुई। बल्कि वह मुस्लिम लीग की ही जारज संतान की तरह पैदा हुई और पसमांदा नेतृत्व उसे बड़े शौक से पालता-पोसता रहा। रामजी यादव का विश्लेषण
असल में सामाजिक ताने-बाने, जाति-व्यवस्था और दूसरे मामलों में मुसलमान समाजों की वास्तविकता अभी तक स्पष्ट नहीं थी और सम्पूर्ण मुसलमान समाजों का बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व यहां के अशराफ (अगड़े) मुसलमान करते रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे लंबे समय तक पिछड़ों का नेतृत्व भारत के सवर्ण करते रहे हैं। बता रहे हैं रामजी यादव