तमिल समाज में सांस्कृतिक चेतना शेष भारत की तुलना में अधिक मुखर रहा हैं। ओमप्रकाश कश्यप बताते हैं कि आर्यों की द्रविड़ों पर राजनीतिक विजय का सच चाहे जो भी रहा हो, तमिलनाडु सहित समस्त दक्षिण भारत पर, उनकी सांस्कृतिक विजय, वास्तविकता से ज्यादा मिथक है। इसलिए वहां ब्राह्मणवाद के विरोध के स्वर उत्तर भारत के सापेक्ष कहीं अधिक पुराने और प्रखर हैं
–
खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण किन्नौर का समाज व संस्कृति शेष भारत से अलग है। यह बौद्ध धर्म का इलाका है, जिसे हिंदूवादी संस्कृति लीलती जा रही है। हालांकि आर्थिक संपन्नता के आगमन से जाति-आधारित उत्पीड़न और भेदभाव कम हो रहा है। पढें, फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन की किन्नौर यात्रा के दौरान की गई यह बातचीत :
सरकार एक तरफ आरक्षण के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने की बात कह रही है, तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद कई विश्वविद्यालयों ने एमएचआरडी व यूजीसी के सर्कूलर का इंतजार किए बगैर ही विभागवार आरक्षण के आधार पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिए हैं
गोंडवाना दर्शन मासिक पत्रिका के संस्थापक संपादक रहे सुन्हेरसिंह ताराम का निधन बीते 7 नवंबर 2018 को हो गया। गोंडी सहित आठ आदिवासी भाषाओं, साहित्य और संस्कृति को बचाए रखने के लिए वे हमेशा प्रयासरत रहे। उन्हें श्रद्धांजलि दे रही हैं उनकी जीवन-साथी उषाकिरण अत्राम :
Sunher Singh Taram, the founder-editor of monthly magazine Gondwana Darshan, passed away on 7 November 2018. He worked tirelessly for preserving eight Adivasi languages, including Gondi, their literature and culture. His wife Ushakiran Atram remembers him
भाषा, साहित्य की विभिन्न धाराओं-ओबीसी-बहुजन साहित्य, अस्मिता, अस्मिताओं के संघर्ष, मिथकों पर दावेदारी आदि विभिन्न सवालों पर कथाकार उदय प्रकाश से प्रेमा नेगी की बातचीत
Prema Negi in conversation with short-story writer Uday Prakash
असुरक्षा के भाव से पीडित शासक वर्ग ने मराठी, तेलुगू, गुजराती, पंजाबी, बांग्ला, कश्मीरी आदि भाषायों के शब्द हिंदी में आत्मसात कर उसे अधिक स्वीकार्य बनाने की प्रक्रिया बाधित की
An insecure ruling class scuttled the plan of expanding Hindi – by borrowing and assimilating words from Marathi, Telugu, Gujarati, Punjabi, Bangla and Kashmiri – and making it more accessible
भारत का शासक वर्ग बड़ी चालाकी से अंग्रेजी का उपयोग अपनी छवि को चमकाने और आमजनों को अज्ञानी बनाये रखने के लिए कर रहा है
The members of the Indian ruling class today use English expediently, enhancing their image while keeping the masses ill informed
किसी भी व्यवस्था के जमने के लिए एक जरूरी शर्त यह है कि वह अपनी एक भाषा तैयार करे। जैसे, ब्राह्मणवाद ने अपनी एक भाषा तैयार की और वह समाज में हजारों वर्षों से चल रही है
Developing its own language is a sine qua non for the establishment and sustenance of any system. For instance, Brahamanism has its own language and has been dominating our society for thousands of years
जहां हमें मार्क गनजोर की फिल्म ‘ए टेल ऑफ़ टू ब्रेन्स’, ‘दो दिमागों की कहानी’ दिखाई गयी, जो महिलाओं और पुरूषों के मस्तिष्क के अंतरों का सटीक व विस्तृत विवरण करती है
where we were shown a film called A tale of two brains by Mark Gungor. It is a very precise, descriptive mind-opener to the workings of the female and the male brains
राजेन्द्र यादव मानते थे कि भाषा का विकास सबसे अधिक औरतें और श्रम से जुड़े लोग किया करते हैं। आचार्यगण उन्हें भले ही भाषा को भ्रष्ट करने वालों की श्रेणी में रखें, पर भाषा के विकास का सत्य यही है
Rajendra Yadav believed that it is the women and workers who are the biggest contributors to the development of languages. Scholars may claim that they corrupt the language but that is what real development of languages is all about