बीते 14 अप्रैल, 2020 को डॉ. आंबेडकर की 129वीं जयंती के मौके पर आनंद तेलतुंबड़े ने भीमा-कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मान रखते हुए खुद को एनआईए के हवाले कर दिया। तेलतुंबड़े के लेखनों का हवाला देते हुए वी.गीता कहती हैं कि वे उस विकृत और कमज़ोर आंबेडकर के अनुयायी नहीं, जिससे राज्य व सामाजिक व्यवस्था सहजता महसूस करता हो, बल्कि एक संपूर्ण और क्रन्तिकारी आंबेडकर के प्रति उनकी निष्ठा है
On 14 April 2020, the 129th anniversary of Dr B.R. Ambedkar, Prof Anand Teltumbde handed himself over to the custody of the National Investigation Agency as ordered by the Supreme Court in the Bhima Koregaon case. Drawing on Teltumbde’s writings, V. Geetha argues that it is the real, radical Ambedkar that he looks up to, not the toned-down version of Ambedkar that the civil order and the State is comfortable with
हिन्दू धर्म में रहते हुए अछूतों को समानता दिलवाने की कोई संभावना नज़र न आने पर, आंबेडकर ने उस संहिता के दहन का नेतृत्व किया, जो इस धर्म को एक बनाती थी. गोल्डी एम. जॉर्ज लिखते हैं कि यह कदम उनके इस निर्णय का प्रतीक था कि वे एक हिन्दू के रूप में मरना नहीं चाहते
Having exhausted all possibilities of achieving equality for the Untouchables within Hinduism, Ambedkar led in the burning of the code that held the religion together. This act symbolized his decision that he would not die a Hindu, writes Goldy M. George
प्रशासन की हरकतों से भीमा कोरेगांव में आयोजकों में गुस्सा है कि वह कई प्रमुख संगठनों को वहां आने से रोक रहा है। प्रकाश आंबेडकर, भारत मुक्ति मोर्चा और वामसेफ ने चंद्रशेखर को हिरासत में लेने का विरोध किया है
–
भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े तथ्यों की जांच के लिए बनाई गई 9 सदस्यों की फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। हिंसा के लिए हिंदुवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हुए रिपोर्ट बताती है कि कैसे मराठों और दलितों को लड़ाकर बहुजनों के बीच फूट डालने की कोशिश की गई। बता रहे हैं विशद कुमार :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
डिग्री प्रसाद चौहान ने छत्तीसगढ़ में महिषासुर आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। वे दलित-आदिवासियों के सांस्कृतिक व सामाजिक अधिकारों के लिए लडने वाले जमीनी कार्यकर्ता हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें ‘शहरी नक्सली’ करार दिया है। छत्तीसगढ़ से फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
Degree Prasad Chouhan has played a crucial role in advancing the cause of the Mahishasur movement. He is a grass-roots activist and lawyer who fights for the cultural and social rights of Dalits and Adivasis. Now the Maharashtra Police have branded him as ‘urban terrorist’. Forward Press reports from Chhattisgarh
हाल ही में देश में पांच बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आगामी 7 सितंबर तक उन्हें अपने-अपने घरों में नजरबंद रखने का आदेश दिया है। इसे लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। इसी चर्चा के बीच अपने एक लेख पर उठाये गये सवाल का जवाब दे रहे हैं प्रेमकुमार मणि :
This post is only available in Hindi.
Visit the Forward Press Facebook page and and follow us on Twitter @ForwardPressWeb
भीमा-कोरेगांव में हिंसा को लेकर सरकार तथाकथित ‘शहरी नक्सलियों’ की धड़पकड़ कर रही है और इस क्रम में पुणे पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। उनमें वेरनॉन गोंसाल्वेस भी हैं। उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे मुंबई विश्वविद्यालय में इकनॉमिक्स में गोल्ड मेडलिस्ट रहे और कई कॉलेजों में अध्यापन किया है। बता रहे हैं अशोक झा :
इसी वर्ष 1 जनवरी 2018 को जब देश भर के दलित दो सौ वर्ष पहले पेशवाई राजाओं के खिलाफ मिली बड़ी जीत का जश्न मनाने एकत्रित हुए थे तब संघ समर्थकों द्वारा उनका विरोध किया गया और तदुपरांत हिंसक घटनायें घटित हुई थीं। फरवरी में इसकी जांच को लेकर फड़णवीस सरकार द्वारा गठित न्यायिक आयोग अब हरकत में आया है। एक खबर :
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सरकार की पोल खुल चुकी है। इसके बावजूद वो मीडिया का इस्तेमाल करके अपने हथियारों को पैना बनाए रखने की कोशिश में है। क्या भीमा कोरेगांव की लड़ाई सरकार हार चुकी है? ताजा घटनाक्रम में मीडिया की भूमिका और प्रबुद्ध लोगों की प्रतिक्रियाओं पर कमल चंद्रवंशी की रिपोर्टः
The government stands exposed in the Bhima Koregaon issue. Even then it is using the media to fend off attacks. But has it already lost the plot?
भीमा-कोरेगांव विजयोत्सव के दौरान हिंसा फैलाने का आरोपी मिलिंद एकबोटे आखिरकार पकड़ा गया। हालांकि अदालत में उसने स्वयं को पाक साफ कहा है। परंतु अबतक हुए पुलिसिया जांच में यह स्पष्ट है कि हिंसा में उसकी भूमिका थी। कबीर की रिपोर्ट :
He is suspected of inciting violence during the celebrations to commemorate the victory in the Battle of Koregaon. While he has told the court that he had nothing to do with violence, the findings of the police investigation so far suggest otherwise