अपर्णा बता रही हैं कि कोरोना संकट की मार सबसे अधिक महिलाओं पर पड़ी है। खासकर दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्ग की महिलाओं के उपर जिन्हें घर और बाहर की जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं
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भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी एक बड़ा सवाल है। बतौर उदाहरण यह कि वर्ष 2017 में आईआईटी के विभिन्न संकायों में केवल 10 फीसदी उम्मीदवार ही महिलाएं थीं। लैंगिक समानता को बनाने की दिशा में नीदरलैंड के प्रमुख शिक्षण संस्थान की यह पहल एक नजीर है
अरविंद जैन इस लेख में बता रहे हैं कि कैसे इस देश के न्यायालयों में महिलाओं को पहले तो वकालत करने से रोका गया और कैसे कानून बदला। साथ ही वे यह भी बता रहे हैं कि कैसे ‘मर्दाना’ साजिश के तहत आजतक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने से महिलाओं को रोका गया है
विचित्र विडंबना है कि आज भी घोषित-अघोषित रूप से भारतीय समाज और गैर-सरकारी क्षेत्र में अविवाहित लड़कियों को ही प्राथमिकता दी जाती है और विवाहित स्त्रियों को नौकरी के लिए ‘अयोग्य’ समझा जाता है
Arvind Jain writes that it is ironical that even today, whether explicitly or implicitly, unmarried women are preferred for employment in the government and the private sectors and married women are considered ineligible
वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत एनपीए की राशि में 92 फीसदी की वृद्धि हुई है। साथ ही यह भी कहा है कि इस योजना के तहत 74 फीसदी लोन महिलाओं और 36 प्रतिशत लोन दलित, आदिवासी व ओबीसी उद्यमियों को वितरित किए गए हैं