एक हिंदी अखबार के 9 सितम्बर के अंक में छपी खबर का शीर्षक बदलकर सोशल साइट्स पर उसका खास ढंग से डिसप्ले किया गया, ताकि एक खास समुदाय के खिलाफ दूसरे समुदाय के लोगों के बीच दंगाई उत्तेजना पैदा की जा सके। उसके बाद तो ‘सर्वदलीय उन्मादियों’ के बीच महापंचायतें करके दंगा भड़काने की मानो होड़ सी लग गई। उन्हें दंगे के बाद वोटों की फसल जो उगानी थी