अस्मिता और राष्ट्र से संबंधित मसलों की डॉ. आंबेडकर की समझ, जाति पर आधारित समाज पर हावी ब्राह्मणवाद के दमनकारी चरित्र के उनके गहन विश्लेषण पर आधारित थी, बता रहे हैं रौनकी राम
Ambedkar’s understanding of the question of the identity and existence of the nation was based on his incisive analysis of the oppressive character of Brahmanism that pervaded a society built around the caste system, writes Ronki Ram
ज्यां द्रेज के मुताबिक, भारत में हिन्दू राष्ट्रवाद के उभार को हम समतामूलक प्रजातंत्र के खिलाफ ऊंची जातियों की बगावत के रूप में देख सकते है। ऊंची जातियों के लिए हिंदुत्व वह ‘लाइफबोट’ है जो उन्हें उस काल में वापस ले जाएगी, जब ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था का बोलबाला था
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सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में अब दलित, पिछड़े,आदिवासी व मुसलमान एकजुट हो रहे हैं। ऐसी ही एकजुटता बीते 4 मार्च को प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व में दिल्ली के जंतर-मंतर पर देखने को मिली। सुशील मानव की खबर
उमर खालिद विशेष बातचीत में बता रहे हैं कि जवाबदेही के बिना लोकतंत्र मर जाता है। यह एक व्यक्ति के तानाशाह बनने का सवाल नहीं है – कल को वह व्यक्ति नहीं भी हो सकता है, लेकिन अगर व्यवस्था की हालत इस तरह की हो जाए, तो हमें सिर्फ़ तानाशाही सरकारें ही हासिल होंगी चाहे सत्ता में कोई भी आए
Umar Khalid, the former JNU scholar who is now an activist fighting the hate-mongering ideology of the RSS and the BJP, believes that the Left has failed because it hasn’t engaged with the issue of caste
क्या राष्ट्र शब्द आज भी पहेली बना हुआ है? शायद राष्ट्रवाद के शोर ने उसके अर्थ को ही पलटकर रख दिया है। देश और राष्ट्र के फर्क के अलावा भारतीय समाज के पहचान को लेकर 31 जुलाई 2019 को मुंशी प्रेमचंद की जयंती के मौके पर प्रतिष्ठित साहित्यिक मासिक ‘हंस’ की मेजबानी में दिल्ली में जानेमाने विचारक एक मंच पर होंगे। बता रहे हैं कमल चंद्रवंशी
फिल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह ने क्या कुछ ऐसा कह दिया है जो वर्तमान में भारत में घटित नहीं हो रहा है? आखिर क्या वजह है कि आरएसएस समर्थक उन्हें देशद्रोही तक करार दे रहे हैं?
RSS supporters have branded the veteran actor as a traitor for pouring his heart out on a string of hate crimes carried out with impunity
राजनीतिक पार्टियां हार में भी अपनी जीत तलाशती हैं और कई बार इसमें सफल भी रहती हैं। आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ऐसा ही रुख अख्तियार किया है। वैसे सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले ने इसे असंवैधानिक नहीं बताया पर आधार इस फैसले से लहूलुहान हो गया है। पढ़िए यह आलेख
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
आंबेडकर ने राष्ट्रीयता और महिलाओं की स्थिति के बीच के अन्तर्संबंधों का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने भारत माता के रूप में भारतीय राष्ट्रीयता की अवधारणा को महिलाओं के खिलाफ पाया। भारत में राष्ट्रीयता और महिलाओं की स्थिति के बीच किस तरह के संबंधों की परिकल्पना आंबेडकर करते थे, बता रही हैं, नेहा सिंह :
Ambedkar studied in depth the interrelationship between nationalism and women and found the idea of ‘Bharat Mata’ to be anti-women. Neha Singh explains what, according to Ambedkar, the place of women in a nation ought to be
जैसे-जैसे वर्ष बीतते जा रहे हैं, बाबासाहेब भीमराव रामजी आंबेडकर का मुझ पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है और वे मेरे समक्ष नई-नई चुनौतियां प्रस्तुत कर रहे हैं। आप भारत को तब तक नहीं बदल सकते, जब तक आप उसे न समझें; आप भारत को तब तक नहीं समझ सकते, जब तक आप जाति को न समझें और आप जाति को तब तक नहीं समझ सकते, जब तक आप आंबेडकर को न समझें। यहां, हर्ष मंदर आंबेडकर के चिरस्मरणीय योगदान की व्याख्या कर रहे हैं।
‘As the years pass, I am influenced – and challenged – more and more by Babasaheb Bhimrao Ramji Ambedkar. You cannot change India until you understand India, you cannot understand India until you understand caste, and you cannot understand caste until you read Ambedkar.’ Harsh Mander elucidates Ambedkar’s monumental contribution
सन 2001 से लेकर 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी में 13.3 करोड़ की वृद्धि हुई, जो कि सन 2001 में मुसलमानों की कुल आबादी के लगभग बराबर थी। यह साफ है कि मुसलमानों की आबादी के हिन्दुओं से अधिक हो जाने के खतरे के संबंध में जो दुष्प्रचार किया जा रहा है, उसमें कोई दम नहीं है। राम पुनियानी का विश्लेषण :
While the RSS and its affiliates harp on about the increasing Muslim population, demographers link the higher fertility rates to the lack of education and poor health facilities, writes Ram Puniyani