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ज्यां द्रेज के मुताबिक, भारत में हिन्दू राष्ट्रवाद के उभार को हम समतामूलक प्रजातंत्र के खिलाफ ऊंची जातियों की बगावत के रूप में देख सकते है। ऊंची जातियों के लिए हिंदुत्व वह ‘लाइफबोट’ है जो उन्हें उस काल में वापस ले जाएगी, जब ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था का बोलबाला था
सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में अब दलित, पिछड़े,आदिवासी व मुसलमान एकजुट हो रहे हैं। ऐसी ही एकजुटता बीते 4 मार्च को प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व में दिल्ली के जंतर-मंतर पर देखने को मिली। सुशील मानव की खबर
Umar Khalid, the former JNU scholar who is now an activist fighting the hate-mongering ideology of the RSS and the BJP, believes that the Left has failed because it hasn’t engaged with the issue of caste
उमर खालिद विशेष बातचीत में बता रहे हैं कि जवाबदेही के बिना लोकतंत्र मर जाता है। यह एक व्यक्ति के तानाशाह बनने का सवाल नहीं है – कल को वह व्यक्ति नहीं भी हो सकता है, लेकिन अगर व्यवस्था की हालत इस तरह की हो जाए, तो हमें सिर्फ़ तानाशाही सरकारें ही हासिल होंगी चाहे सत्ता में कोई भी आए
क्या राष्ट्र शब्द आज भी पहेली बना हुआ है? शायद राष्ट्रवाद के शोर ने उसके अर्थ को ही पलटकर रख दिया है। देश और राष्ट्र के फर्क के अलावा भारतीय समाज के पहचान को लेकर 31 जुलाई 2019 को मुंशी प्रेमचंद की जयंती के मौके पर प्रतिष्ठित साहित्यिक मासिक ‘हंस’ की मेजबानी में दिल्ली में जानेमाने विचारक एक मंच पर होंगे। बता रहे हैं कमल चंद्रवंशी
RSS supporters have branded the veteran actor as a traitor for pouring his heart out on a string of hate crimes carried out with impunity
फिल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह ने क्या कुछ ऐसा कह दिया है जो वर्तमान में भारत में घटित नहीं हो रहा है? आखिर क्या वजह है कि आरएसएस समर्थक उन्हें देशद्रोही तक करार दे रहे हैं?
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
राजनीतिक पार्टियां हार में भी अपनी जीत तलाशती हैं और कई बार इसमें सफल भी रहती हैं। आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ऐसा ही रुख अख्तियार किया है। वैसे सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले ने इसे असंवैधानिक नहीं बताया पर आधार इस फैसले से लहूलुहान हो गया है। पढ़िए यह आलेख
Ambedkar studied in depth the interrelationship between nationalism and women and found the idea of ‘Bharat Mata’ to be anti-women. Neha Singh explains what, according to Ambedkar, the place of women in a nation ought to be
आंबेडकर ने राष्ट्रीयता और महिलाओं की स्थिति के बीच के अन्तर्संबंधों का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने भारत माता के रूप में भारतीय राष्ट्रीयता की अवधारणा को महिलाओं के खिलाफ पाया। भारत में राष्ट्रीयता और महिलाओं की स्थिति के बीच किस तरह के संबंधों की परिकल्पना आंबेडकर करते थे, बता रही हैं, नेहा सिंह :
Bhagat Singh wasn’t just born into the Shudra community. His thinking was shaped by the need he saw around him for the upliftment of Shudras and Atishudras and the establishment of social equality – but our historians have always ignored this fact. Ashok Yadav tells the story
भगत सिंह न सिर्फ शूद्र समूदाय में पैदा हुए थे, बल्कि उनके चिंतन की प्रमुख प्रेरणा भी शूद्रों व अतिशूद्रों का उत्थान और सामाजिक समानता की स्थापना रही है, जिसे हमारे इतिहासकारों ने हमेशा नजरअंदाज किया है। अशोक यादव का विश्लेषण :
Since we Bahujans continue to swell the ranks of Hindu religion, no, we have not annihilated caste. Rather, we seem to have strengthened it. Certainly, many have left Hinduism to embrace other religions but even there they have taken shelter under the very blind devotion and irrational ritualism that Babasaheb and Buddha thundered against. Read Nijam Gara’s analysis of the sorry state of affairs
चूंकि हम बहुजन आज भी हिन्दू धर्म के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं इसलिए हम जाति का उन्मूलन नहीं कर सके हैं। उल्टे, हमने जाति व्यवस्था को शायद मजबूती ही दी है। हममें से कुछ ने हिन्दू धर्म को त्यागकर अन्य धर्मों को अपनाया है परंतु वहां भी हम अंधभक्ति और अतार्किक कर्मकांडवाद, जिनके विरूद्ध बाबासाहेब और बुद्ध ने हुंकार भरी थी, के मकड़जाल में फंसे हुए हैं। निजाम गारा का विश्लेषण :
Anil Kumar tries to understand the various conflicting nationalisms of India by analyzing the debate and discussion on the propriety or otherwise of Mahishasur Day celebrations and the clashes they have triggered
महिषासुर शाहदत दिवस के आयोजनों और उसके पक्ष –विपक्ष की बहसों/संघर्षों के विश्लेषण से अनिल कुमार भारत की कई राष्ट्रीयताओं और उनके बीच संघर्ष को समझाने की कोशिश कर रहे हैं