नाटक में संविधान निर्माण को बेहद आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया गया। इस प्रसंग में डॉ. आंबेडकर द्वारा संविधान के प्रस्तावना के पाठ ने दर्शकों को उत्साहित कर दिया। हालांकि हिंदू कोड बिल प्रकरण को नाटक के स्टोरी लाइन में नहीं रखा जाना इस बात की ओर संकेत करता है कि जो आपत्तियां 1949 में पितृसत्ता और जाति के विनाश को लेकर थीं, वही आपत्तियां आज भी कायम हैं। बता रहे हैं नवल किशोर कुमार