दलित-ओबीसी जाति से आने वाले लेखकों की आत्मकथायें सामाजिक-सांस्कृतिक भेदभाव की स्थितियों, परिवेश और उसके कारकों को स्पष्ट करती हैं। ये आत्मकथायें मानवशास्त्रीय अधययन के लिए एक स्रोत होती हैं। दलित-ओबीसी लेखकों की आत्मकथाओं में शोषण की कुछ समान पृष्ठभूमि है कुछ अलग। इन आत्मकथाओं के जरिये दलित-ओबीसी समुदायों के लिए शैक्षणिक परिदृश्य को स्पष्ट करता तृप्ति सिंह का आलेख :