विभागवार आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2019 को केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। मतलब अब आरक्षण का निर्धारण 13 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर होगा। लेकिन सच तो यह है कि आरक्षित वर्गों का हित अक्षुण्ण रहे, इसके लिए विश्वविद्यालयवार आरक्षण ही एकमात्र विकल्प है। वजह यह कि 13 प्वाइंट और 200 प्वाइंट दोनों रोस्टर गणितीय जालसाजी है
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। अब सरकार चाहे तो ऑफिस मेमोरेंडम के जरिए भी विश्वविद्यालयों में विभागवार आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बना सकती है। संविधान के अनुच्छेद 73 में कार्यपालिका को यह अधिकार दिया गया है
पूरे देश में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को बताया जा रहा है कि यदि 200 प्वाइंट का रोस्टर लागू हो गया, तो विश्वविद्यालयों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो जाएगा। परंतु, ऐसा नहीं है। यह भ्रम फैलाया जा रहा है। असल मामला विश्वविद्यालयवार आरक्षण लागू करने का है
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राज्यसभा में बयान दिया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी। याचिका खारिज होने की स्थिति में वह अध्यादेश लाएगी और तब तक विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों पर रोक लगी रहेगी
सरकार एक तरफ आरक्षण के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने की बात कह रही है, तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद कई विश्वविद्यालयों ने एमएचआरडी व यूजीसी के सर्कूलर का इंतजार किए बगैर ही विभागवार आरक्षण के आधार पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिए हैं
विभागवार आरक्षण के विरोध में 31 जनवरी को दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन में समाजवादी पाटी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल शामिल रहे। साथ ही भीम आर्मी के अलावा विभिन्न दलों के छात्र संगठनों ने आवाज बुलंद की
विश्वविद्यालयों में आरक्षण के सवाल पर केंद्र सरकार और यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट में उन तथ्यों काे विस्तारपूर्वक रखा, जो यह बताते हैं कि यदि विभागवार आरक्षण लागू हुआ तो उच्च शिक्षा में आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व लगभग पूरी तरह समाप्त हो जाएगा
विपक्षी दलों के साथ ही अब एनडीए में शामिल अपना दल ने भी 13 प्वाइंट रोस्टर का विरोध किया है। उन्होंने एनडीए की बैठक में अपनी ही सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है
अदालत का मानना है कि यदि विश्वविद्यालय को इकाई मानकर रोस्टर बनाया गया तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा। जबकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान इन्हीं अनुच्छेदों के तहत किया गया है। सवाल उठता है कि यदि विभाग को इकाई माना गया तो आरक्षित वर्गों के लिए 49.5 फीसदी आरक्षण कैसे मिलेगा?
यदि 200 प्वायंट के आधार पर रोस्टर बनेगा तब निश्चित तौर पर पचास फीसदी सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों को लाभ मिलेगा। परंतु अब यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर विभागवार आरक्षण का प्रावधान होगा तो आरक्षित वर्ग के लिए कोई पद नहीं होगा