राष्ट्र के संचालन में नौकरशाही व्यवस्था की अहम भूमिका है। नौकरशाहों की नियुक्ति यूपीएससी के जरिए की जाती रही है। लेकिन अब पिछले दरवाजे से यानी लैटरल इंट्री के जरिए भी निुयक्तियां होने लगी हैं। केंद्र सरकार के इस कदम को सामाजिक न्याय का हनन बता रहे हैं निखिल कुमार
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सत्ता स्वतंत्र तरीके से पत्रकारिता करने वाले समाज के जागरुक नागरिकों में कुछेक को तरह-तरह से प्रताड़ित कर बाकी की जागरूकता को डराना चाहती है। किसी एक की गिरफ्तारी वास्तव में एक संदेश के लिए की जाती है जैसे हमने मिथकों में एकलव्य के रुप में देखा है। अनिल चमड़िया का विश्लेषण
यूजीसी एक्ट, 1956 के तहत पब्लिक फंड यानी इस देश की जनता के टैक्स के पैसे की मदद लेने वाली सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए सरकार की आरक्षण नीति को लागू करना जरूरी है। लेकिन इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। बता रहे हैं दीपक के. मंडल
पूछना तो उन किसानों को भी चाहिए जिनके खाते में दो हज़ार की रकम आई कि उन्हें इतना कम क्यों मिला? साल भर में छह हज़ार का वे क्या करेंगे? पांच सौ रुपए महीने की इस दयानतदारी से उनका पेट कितना भर सकता है? रामजी यादव का विश्लेषण
इस आंदोलन में भूमिहीन छोटे किसान, बटाईदार आधिहा रेगहा लेने वाले किसानों को शामिल कर आंदोलन का विस्तार किया जा सकता है। बता रहे हैं संजीव खुदशाह
यह समझा जाता है कि शिक्षा शेरनी का दूध है और जो पिएगा वह दहाड़ेगा लेकिन नए हालात में क्या हो रहा है? वास्तविकता तो यह है कि इस शेरनी को ही पूंजीपतियों ने पालतू बना लिया है और इसके दूध को मनमाने दाम पर बेच रहे हैं। वे नहीं चाहते कि यह दूध किसी को मुफ्त मिले। रामजी यादव का विश्लेषण
कंवल भारती के मुताबिक, भारत के किसानों ने मोदी सरकार के कारपोरेट कृषि कानूनों में निहित खतरों को अच्छी तरह पहचान लिया है। जिस तरह दूध का जला, छाछ भी फूंककर पीता है, उसी प्रकार हरित क्रांति से उभरी बाजार-व्यवस्था के दुष्प्रभावों से प्रभावित किसानों को ये कानून भी रास नहीं आ रहे हैं
जब भारत का संविधान अनुच्छेद 25 यह आजादी देता है कि व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी धर्म चुन सकता है, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के दिमाग में धर्म-परिवर्तन के खिलाफ उल्लू कैसे बैठ गया? संविधान की शपथ खाकर पदासीन कैबिनेट ने संविधान-विरोधी इस अध्यादेश को पास कैसे कर दिया? इसके पीछे सरकार की मंशा दलितों को दलित बनाए रखने की है। बता रहे हैं कंवल भारती
चूंकि संविधान देश के आदिवासियों, दलितों, अन्य वंचित पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के पक्ष में खड़ा है, इसलिए संघ उसे ही समाप्त कर देना चाहता है और यह कोई ढंकी-छिपी मंशा नहीं है, बल्कि बेहद स्पष्ट है। भंवर मेघवंशी का विश्लेषण
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति आरएसएस के लिए सबसे आसान है। हालांकि इस स्थिति के निर्माण के लिए उसने लंबे समय से राजनीतिक अभियान चलाया है और बहुजन युवाओं को हिन्दू उन्मादी बना दिया है। ऐसे में तेजस्वी यादव की रणनीति ने एक नई राह दिखाई है। कंवल भारती का विश्लेषण