सन्तराम जी और उनके ‘जातपात तोड़क मण्डल’ ने अपने जाति-विरोध से पूरे देश का ध्यान खींचा था। पर उसे जितना समर्थन मिला था, उससे कहीं ज्यादा रूढ़िवादियों ने उसका विरोध किया था। विरोधियों में देश के चोटी के विद्वान सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ भी थे। स्मरण कर रहे हैं कंवल भारती :