गुरू घासीदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब हिन्दू समाज में जातिवाद, छुआछूत, धर्मांधता और रूढि़वाद के कारण मनुष्यों के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता था और ब्राह्मणवाद अपने चरम पर था। ऐसे समय में गुरू घासीदास ने सतनाम पंथ के माध्यम से जाति-आधारित अत्याचार, छुआछूत और वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार किया