दलित विमर्श का मतलब दलितों के हित की बात करना भर नहीं है, बल्कि उस पूरी व्यवस्था पर आघात करना है, जो एक पूरी मनुष्य-आबादी को जन्म के आधार पर ऊंच और नीच में विभाजित करने के लिए जिम्मेदार है। मेरी नजर में शैलेंद्र सागर ने यह आघात ईमानदारीपूर्वक किया है। बता रहे हैं कंवल भारती