ओबीसी का साहित्यिक विलुप्तीकरण चिंताजनक है। उसे पहचान खोजनी होगी। दार्शनिक वैचारिक आधार तलाशना होगा। ओबीसी को यह तय करना होगा किउसे अस्पृश्यों, शोषितों, बहिष्कृतों को फुले, शाहू महाराज की तरह सहयोग करना है या वर्चस्ववादी एकाधिकारी शक्तियों में शामिल रहना है