आंबेडकर ने इस बात का खंडन किया कि जमीन आर्थिक आजीविका का साधन है। उनका मत था कि भारत में जमीन रखना आर्थिक जीविका का मामला नहीं है, वरन् सामाजिक हैसियत का मामला है। जमीन रखने वाला आदमी अपने आप को उस आदमी से उच्चतर हैसियत वाला मानता है, जो जमीन नहीं रखता है। यही कारण है कि कोई हिन्दू नहीं चाहता कि दलित जातियों के लोग जमीन पाकर उच्च जातियों के समान स्तर पर पहुँचें। कंवल भारती का विश्लेषण :