बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी सहित राज्य के 22 दलित-आदिवासी विधायकों ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। उनके मुताबिक आरक्षण के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों से देश के दलित-आदिवासी सशंकित और अपमानित महसूस कर रहे हैं
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एससी/एसटी या ओबीसी वर्ग के कुछ लोग आर्थिक रूप से भले ही सबल हो जाएं, उनके लिए सामाजिक हक़ीक़त में बहुत ज़्यादा बदलाव अभी भी नहीं हुआ है। उनकी सामाजिक स्थिति को लेकर सवर्णों के नज़रिए में आज भी बहुत ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया है और इस वजह से आरक्षण उनके लिए आज भी उतना ही ज़रूरी है। बता रहे हैं अशोक झा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के सन्दर्भ में दिए गए फैसले का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक दुष्प्रभाव समाज के कमजोर और उपेक्षित वर्गों के ऊपर सीधे तौर पर पड़ेगा। यह फैसला संविधान की मूल भावना का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन करता है। ओमप्रकाश कश्यप का विश्लेषण
भारत में दर्ज होने वाले संज्ञेय मामलों में यौन हिंसा से जुड़े मामलों की बड़ी भागीदारी है। अरविन्द जैन ने इसका विस्तार से वर्णन किया है। उनके मुताबिक समाज में यौन हिंसा के मामलों की संख्या तो साल-दर-साल बढ़ ही रही है, न्यायालयों के पुरूष केंद्रित रूख में भी कोई खास फर्क नहीं आया है
लेखक अरविंद जैन बता रहे हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 415 में धोखाधड़ी की व्याख्या की गयी है। इस धोखाधड़ी में शादी का झूठा आश्वासन देकर यौन शोषण करना शामिल है या नहीं, इसे लेकर अदालतें एकमत नहीं हैं
रख्माबाई भारत की पहली महिला चिकित्सक थीं। इसके अलावा बेमेल शादी के खिलाफ अदालत में चुनौती देने वाली वह पहली महिला थीं। हालांकि कानूनी खेल में जीत अंतत: पुरूषवादी सामाजिक व्यवस्था को मिली, जो आजतक बरकरार है। अरविंद जैन का आलेख
वक्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों का पक्ष नहीं रखा। यहां तक कि उसने अपना वकील तक नहीं भेजा। इसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों के खिलाफ फैसला दिया। यह ऐतिहासिक अन्याय है
सबरीमाला मंदिर में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खत्म किये जाने का फैसला केरल के सवर्ण हिंदुओं को नहीं पच रहा है। वे इसके विरोध में खड़े हो गये हैं। साथ ही कांग्रेस, आरएसएस और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां भी उसके साथ हैं। आखिर इस एकजुटता का राज क्या है? बता रहें हैं सिद्धार्थ :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस ईश्वरैया यह मानते हैं कि सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी बहुत कम है। उन्हें क्रीमीलेयर के जरिए बाहर रखा जा रहा है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि असंतुलन को खत्म करने के लिए इस वर्ग के कर्मियाें को भी एससी-एसटी के तर्ज पर पदोन्नति में आरक्षण दी जाय। फारवर्ड प्रेस की खबर :
The former chairperson of the National Commission for Backward Classes is of the view that OBCs shouldn’t be denied reservation in promotion because of the condition of creamy layer. He said creamy layer should merely determine the order of preference – the weakest first followed by the rest. A report by Forward Press
सुप्रीम कोर्ट की पीठ को इस बात पर भी अपना रुख स्पष्ट करना है कि एससी-एसटी के लोगों में पिछड़ापन अभी भी कायम है और वे इतने पिछड़े हैं कि उन्हें पदोन्नति में आरक्षण की जरूरत है। परंतु क्रीमी लेयर का मामला भी महत्त्वपूर्ण है। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
The Constitution bench of the Supreme Court has to clarify its stand on whether the backwardness among SCs and STs persists to the extent that they need reservation in promotion. Besides, the issue pertaining to the creamy layer among SCs and STs is also vital. A Forward Press report