बिहार महादलित आयोग के सदस्य रहे बबन रावत को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर सफाईकर्मियों की समस्याएं और सरकारी नीतियों के संदर्भ में राज वाल्मीकि द्वारा उनसे खास बातचीत
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जाट और सिक्ख समुदाय के लोगों का चरित्र अलग है और बिहार के किसानों का चरित्र अलग है। बिहार के बड़े किसान सामंत हैं और खेती को नीच कर्म मानते हैं। जबकि पंजाब में बड़े किसान स्वयं भी खेतों में काम करते हैं। बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य एन. के. नंदा से नवल किशोर कुमार की खास बातचीत
Jats and the Sikhs are different from the farmers of Bihar. The big farmers of Bihar are feudal and consider farming a lowly job. In Punjab, even large landowners work the fields, N.K. Nanda, a former Bihar MLA, tells Nawal Kishore Kumar
इसको ऐसे भी समझिए कि अभी तक पश्चिम बंगाल में तो यह माना जाता रहा कि दलितों का कोई साहित्य है ही नहीं। लंबी लड़ाई के बाद वे यह स्वीकार करने लगे हैं कि शोषितों और वंचितों का भी साहित्य है। इसलिए मेरे हिसाब से यह एक बड़ी कामयाबी है दलित वर्गों की। फारवर्ड प्रेस के हिन्दी संपादक नवल किशोर कुमार से बातचीत में पश्चिम बंगाल में नवगठित दलित साहित्य अकादमी के अध्यक्ष मनोरंजन ब्यापारी
राज्य और केन्द्र सरकार के पदों में समतुल्यता तय होनी चाहिए। लेकिन अभी तक यह समतुल्यता तय नहीं हुई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में ओबीसी के लोग नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। ओबीसी मामले को लेकर गठित संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह से नवल किशोर कुमार की खास बातचीत
प्रकाश आंबेडकर के अनुसार सीएए-एनपीआर-एनआरसी आरएसएस के मूल वैदिक मनुवादी दर्शनशास्त्र को भारत में पुनः स्थापित करने का ज़रिया हैं। यदि भारत में यह दमनकारी कानून लागू हुआ तो विश्व समुदाय के बीच नागरिकता के सवाल पर नकारात्मक संदेश जाएगा। संभव है कि दूसरे देशों में रहने वाले भारतीयों को मिलने वाले अधिकार छीने लिए जाएं
राजनीति में वैचारिक स्पष्टता जरूरी है। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार के साथ प्रकाश आंबेडकर की विस्तृत बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि बसपा और बामसेफ की राजनीति शुरू से ही फेल थी। ये दोनों आंबेडकराइट आइडियोलॉजी से कभी जुड़े नहीं। प्रस्तुत है इस लंबेी बातचीत का संपादित अंश
सवर्णों में गरीबी सामूहिक सवाल नहीं, व्यक्तिगत मसला है। इसलिए सरकार का यह तर्क अनुचित है। वैसे भी आरक्षण का प्रावधान उनके लिए है जो अपने बूते अपनी भागीदारी हासिल नहीं कर सकते
बहरहाल मनोबल से लैस करने में हथियारों की अहमियत दुनिया का कोई और समाज समझे या न समझे किन्तु भारत के हर जागरूक व्यक्ति को ही इसकी अहमियत का अहसास होना चाहिए, क्योंकि यह एक मात्र भारत समाज है, जहां सदियों पूर्व अस्त्र-शस्त्र से लैस एक जाति विशेष के मनोबल को एवरेस्ट सरीखा बुलंद करने का विरल दृष्टांत स्थापित किया गया
Whether or not any other society in the world understands the role of weapons in making one mentally strong, at least Indians can understand it easily, as in Indian society, arms and ammunition were the only source of mental strength of a particular caste
लिखित परीक्षा में शानदार प्रर्दशन करने के बाद भी अच्युतानंद दास और नामपुई जम चोंगा व्यक्तित्व परीक्षा में चयन बोर्ड को प्रभावित नहीं कर सके। दासगुप्ता और सेनगुप्ता के मामले में स्थिति उलटी थी
Despite doing very well in the written exam, Achyutananda Das and Nampui Jam Chonga couldn’t impress the selection board in the personality test. Aniruddha Dasgupta and Rathindra Nath Sengupta achieved the opposite
आरक्षण के संबंध में बरखा दत्त जैसे पत्रकारों और जगदीश भगवती जैसे जानेमाने अध्येताओं के विचार आश्चर्यजनक नहीं हैं। इन विचारों का निर्धारण मुख्यत: उनकी जाति करती है। उन्हें तथ्यों को समझना चाहिए
Journalists like Barkha Dutt and eminent scholars like Jagdish Bhagwati take a predictable position on reservation informed by their birth. They must familiarize themselves with the facts