व्यावहारिक अनुभव और ताप में पगे लेखक शमोएल अहमद का अनुभव जातिवाद, भ्रष्टाचार आदि सडाध के प्रति पाठकों में क्षोभ पैदा करता है। मार्च लूट का प्रसंग हो या कुर्सी को गंगाजल से पवित्र करने का– ये घटनाएं सिस्टम की बर्बरता को बतलाती हैं कि हमारी सोच से आज भी किस तरह से मध्ययुगीन बर्बरता अभी नहीं गई है। अरुण नारायण की समीक्षा