हिंदी साहित्य में द्विज प्रतिमानों और दृष्टि को चुनौती देकर नये प्रतिमान गढ़ने वाले बहुजन अध्येताओं में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने हिंदी साहित्य, भोजपुरी भाषा और भारतीय इतिहास के अनदेखे और उपेक्षित कर दिए गए पहलुओं को उजागर किया है। इस पूरे संदर्भ में उनकी भूमिका रेखांकित कर रहे हैं हरेराम सिंह :