हमारे समाज में यह धारणा व्याप्त है कि मांस ‘गंदा’ होता है और इससे गंदगी और बीमारियां फैलती हैं। यह धारणा विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों और जातियों में गहरे तक पैठी हुई है। ये वर्ग मांस और मांस की दुकानों को प्रदूषण और गंदगी का स्रोत मानते हैं। दूसरे शब्दों में लिंचिंग, भीड़ द्वारा हिंसा, मांस की दुकानों में तोड़-फोड़ व मांस विक्रेताओं के साथ दुर्व्यवहार, सफाई अभियान का हिस्सा माने जाते हैं! पढ़ें कर्नाटक के सामाजिक संगठन आहार नम्मा हक्कू द्वारा जारी यह खुला पत्र
Association of meat with dirt, disease and poor sanitation is deeply ingrained and captures the imagination of the “pollution hating” privileged classes and castes. This sentiment means that lynching, mob violence, vandalising shops, abusing shop owners, are all seen as part of a sanitation or cleanliness drive!
जोतीराव फुले और डॉ. आंबेडकर के आंदोलन की बदौलत ही आजाद देश के तालीमी इदारे (शिक्षण संस्थाएं) सभी जातियों और धर्मों के लिए खोल दिए गए। इसके बावजूद आज भी वर्चस्ववादी ताकतें नहीं चाहती हैं कि शोषित वर्ग को शिक्षा मिले। बता रहे हैं अभय कुमार
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अनुराग मोदी विस्तार से बता रहे हैं कि ऐसे समय में जब देश के मजदूर सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे थे, सरकार ने उन्हें उनके हाल पर तो छोड़ ही दिया और कुछ देने के बजाय उनके अधिकार भी छीन लिये। ना तो मजदूर अपने वेतन को लेकर, ना बोनस को लेकर और ना ही अपनी सुरक्षा व अन्य मांगों को लेकर कुछ कह पाएंगे और ना ही हड़ताल कर सकेंगे
At a time when the toiling classes of the country were looking to the government for succour, they were not only left to fend for themselves but also stripped of their basic rights. Now they will neither be able make demands related to their wages, bonus and security at the workplace nor go on strike
लेखक प्रेमकुमार मणि बता रहे हैं कि तमिल, संस्कृत के मुकाबले बहुत प्राचीन भाषा है और उसका साहित्य विशद और समृद्ध भी है। साथ ही यह भी कि सिन्धु-सभ्यता से इन द्रविड़ों के पूर्वजों का कोई रिश्ता था। सिन्धु-सभ्यता निवासियों की कुछ प्रवृत्तियां इनमें आज भी देखी जा सकती हैं
दलित और आदिवासियों की मजबूरी का फायदा उठाकर आज भी बंधुआ मजदूरी कराने जैसे काले कारनामों पर रोक नहीं लग सकी है। बेंगलूरु में लेबर माफिया का तब भंडाफोड़ हुआ, जब 52 मजदूर मुक्त कराए गए। उनसे बेहद अमानवीय तरीके से काम लिया जा रहा था
महिष दसरा को कर्नाटक के सांस्कृतिक कैलेंडर में शामिल किया गया है। इस वर्ष हुए आयोजन में पहले से भी अधिक लोगों और प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने भागीदारी ली। विधायक सतीश जारकिहोली ने कहा कि चामुंडी हिल्स पर बनी महिषा की मूर्ति के नकारात्मक स्वरूप को बदलने के लिए वे लोगों से राय मशविरा करेंगे। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Mahisha Dasara has established itself on Karnataka’s cultural calendar. This year, it drew even more dignitaries. Satish Jarkiholi, MLA, said he would seek views on ‘modifying’ the demonic statue of Mahisha atop Chamundi Hills
उत्तर प्रदेश से बाहर पहली बार किसी राज्य में बसपा से मंत्री बने एन. महेश ने कर्नाटक में कुमारास्वामी सरकार से 11 अक्टूबर को अपने पद इस्तीफा दे दिया। इस संबंध में कई कयास लगाये गये। लेकिन अब उन्होंने सारे कयासों को नकारा है। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत का संपादित अंश :
On 14 October 2018, a large number of Dalits and Backwards in Chhapra, Bihar, embraced Buddhism. It is particularly significant in the wake of the increasing atrocities against Dalits in the last few years. A report by Forward Press
कर्नाटक के मैसूर में आगामी 7 अक्टूबर को महिषा दसरा का आयोजन किया जाएगा। इस मौके पर चामुंडी हिल पर राक्षस के रूप में स्थापित महिषासुर की प्रतिमा को हटाकर बौद्ध भिक्खु के रूप में प्रतिमा लगाये जाने की मांग की जाएगी। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
भारत में उद्यमिता का अर्थ अभी तक सिर्फ वैश्य-उद्यमिता ही रही है। पर अब दलित और आदिवासी उद्यमियों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी कड़ी में कर्नाटक की एच. डी. कुमारास्वामी सरकार धारवाड़ में दलित और आदिवासी उद्यमियों के लिए विशेष जोन बनाने जा रही है। पढ़िए यह रपट :
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देश के कई राज्यों ने स्कूली शिक्षा में अहम बदलाव लाते हुए अंग्रेजी को शामिल किया है। एक वजह सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में हो रही लगातार कमी है। इसके विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दे रहे हैं अशोक झा :