“हमें तो अपने लोगों से मतलब है। हम उनके काम आएं, उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाएं। एक जनप्रतिनिधि होने की यह जिम्मेदारियां हैं और जब मैं यह सब करता हूं तो मुझे बहुत खुशी मिलती है।” पढ़ें, सतना से सांसद और ओबीसी संसदीय समिति के पूर्व अध्यक्ष गणेश सिंह पर केंद्रित नवल किशोर कुमार का यह आलेख
“My concern is for my people. I should prove useful to them. I should raise my voice for their rights. These are my responsibilities as a people’s representative. When I do all this, it gives me great happiness,” says Ganesh Singh, MP
बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें आईआईटी, मुंबई और आईआईटी, मद्रास द्वारा आरक्षण के अनुपालन के संबंध में। साथ ही यह भी कि कैसे हरियाणा सरकार द्वारा चुपके से क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख से घटाकर 6 लाख रुपए कर दी गयी।
–
राज्य और केन्द्र सरकार के पदों में समतुल्यता तय होनी चाहिए। लेकिन अभी तक यह समतुल्यता तय नहीं हुई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में ओबीसी के लोग नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। ओबीसी मामले को लेकर गठित संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह से नवल किशोर कुमार की खास बातचीत
ओबीसी के क्रीमी लेयर के सन्दर्भ में गठित शर्मा कमिटी ने हाल ही में सिफारिश की है कि वार्षिक आय में वेतन को भी शामिल किया जाय। ओबीसी संगठनों ने इन सिफारिशों को सिरे से ख़ारिज कर कहा है कि यह ओबीसी के लिए घातक हैं। नवल किशोर कुमार की विशेष रिपोर्ट
आंध्र प्रदेश उच्च शिक्षा विनियामक व पर्यवेक्षण आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) व्ही. ईश्वरैया बता रहे हैं कि किस प्रकार क्रीमी लेयर के प्रावधान का उपयोग ओबीसी को उनके लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण का पूरा लाभ उठाने से वंचित करने के लिए हो रहा है और इस अन्याय को समाप्त करने के लिए उनकी क्या योजना है
Recently appointed chairperson of the Andhra Pradesh Higher Education Regulatory and Monitoring Commission, Justice (retd) V. Eshwaraiah talks about how the creamy-layer principle has been used unjustly to deny OBCs their rightful 27 per cent reservation and how he plans to set that right
बीते 26 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक दिन बाद सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने संसदीय समिति को एक टास्क सौंपा है। उसे यह विचार करने के लिए कहा गया है कि नौकरियों में एससी-एसटी को मिलने वाले आरक्षण में क्रीमी लेयर को लागू किया जा सकता है अथवा नहीं। फारवर्ड प्रेस की खबर
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
सुप्रीम कोर्ट की पीठ को इस बात पर भी अपना रुख स्पष्ट करना है कि एससी-एसटी के लोगों में पिछड़ापन अभी भी कायम है और वे इतने पिछड़े हैं कि उन्हें पदोन्नति में आरक्षण की जरूरत है। परंतु क्रीमी लेयर का मामला भी महत्त्वपूर्ण है। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
The Constitution bench of the Supreme Court has to clarify its stand on whether the backwardness among SCs and STs persists to the extent that they need reservation in promotion. Besides, the issue pertaining to the creamy layer among SCs and STs is also vital. A Forward Press report
वर्ष 2006 में एम नागराज मामले में पांच जजों की पीठ ने कहा कि राज्य पदोन्नति में एससी और एसटी को आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है और एससी और एसटी पर क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं होगा। पर इस मामले में बीते 23 अगस्त 2018 को हुई बहस के दौरान पीठ ने पूछा कि क्या क्रीमी लेयर का सिद्धांत एससी और एसटी पर भी लागू हो सकता है या नहीं। पढ़िए यह रपट :
In 2006, a five-judge bench of the Supreme Court, delivering the judgment in the M. Nagaraj case, had ruled that the government is not bound to give reservation in promotions to the SCs and STs and also that the creamy-layer formulation cannot be applied to the two communities. Now, a decade on, another Supreme Court bench is considering a review of both those rulings
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से साफ़ कहा है कि दलितों और आदिवासियों का पिछड़ापन अभी दूर नहीं हुआ है और इसलिए उनके आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का मामला लागू नहीं होता है। परंतु केंद्र ने क्रीमी लेयर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी का बचाव नहीं किया। बता रहे हैं अशोक झा :
The union government has told the Supreme Court that the Dalits and the Tribals have yet to come out of their backwardness, hence, the ‘creamy layer’ principle cannot be applied to reservations for them. But it did not touch on the issue of ‘creamy layer’ for OBC reservations
अनुसूचित जातियों और जनजातियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने का मुद्दा वर्ष 2006 में एम नागराज मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण उलझ गया है। इतना कि अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इसकी समीक्षा के लिए संविधान पीठ का गठन किया जिसने अब इसकी सुनवाई शुरू कर दी है
This post is only available in Hindi.
Visit the Forward Press Facebook page and and follow us on Twitter @ForwardPressWeb