दलित कथाकार व पत्रकार मोहनदास नैमिशराय की कहानियां सामंती सामाजिक व्यवस्था की तहें उघाड़ती हैं। उनकी कहानियों का पुनर्पाठ कर रहे हैं युवा समालोचक सुरेश कुमार
-If you are a Dalit, you will find that casteism and feudalism are omnipresent – from the village to the local police station to the courts to the prison to the government departments, says Suresh Kumar on reading Mohandas Naimishray’s short stories
मानवाधिकारों की पैरवी हालांकि हर प्रगतिशील साहित्य करता आया है लेकिन दलित साहित्य, दलित समाज में हुए मानवाधिकार के हनन और इससे उपजी पीड़ा का धधकता दस्तावेज है। यह केवल समस्या को उजागर करने वाला साहित्य ही नहीं है बल्कि समस्या के निवारण का भी साहित्य है। बता रही हैं अनामिका अनु
–
दलित पैंथर आंदोलन की गतिविधियों की दृष्टि से मई 1972 से लेकर जून 1975 तक की अवधि सबसे महत्वपूर्ण थी. इस काल में दलित पैंथर आंदोलन ने तूफान-सा बरपा दिया था
मूकनायक के प्रकाशन के सौ वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में एक खास समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर लगभग सभी ने शिद्दत से महसूस किया कि मीडिया के क्षेत्र में स्थितियां अब भी वैसी ही हैं जैसी कि आंबेडकर के समय में थीं। फारवर्ड प्रेस की खबर
बीते 10 जनवरी, 2020 को केरल के पत्तनमतिट्टा में एक कॉलेज में दलित साहित्य को लेकर एक दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसके मुख्य अतिथि मोहनदास नैमिशराय थे। उन्होंने इस मौके पर कहा कि हमें भाषा के अवरोध को खत्म कर आपस में दलित-बहुजन वैचारिकी को साझा करना चाहिए
रामविलास पासवान जी आज की तारीख में भारतीय संसद में वरिष्ठ दलित नेता हैं। क्या ताबड़तोड़ तरीके से दलितों पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम के लिए उन्हें कुछ नहीं करना चाहिए? शायद कर भी रहे हों। पर यह तो अवश्य ही कहा जायेगा कि उतने जोर शोर से नहीं, जैसा पहले वे करते थे। राजनीति की मजबूरी और सत्ता का प्रोटोकाल बीच में तो आता ही है। उनके अतीत को वर्तमान के सापेक्ष याद कर रहे हैं मोहनदास नैमिशराय :
Ram Vilas Paswan is a senior Dalit leader in Parliament. Given the powers at his disposal, shouldn’t he be working towards curbing the rising atrocities against Dalits? He may be doing something about it but it is clear that he is just a shadow of the firebrand leader that he once was