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कांकेर प्रखंड के सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के ज्ञापन में उल्लेख है कि बस्तर संभाग एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, जहां के आदिवासियों की अपनी संस्कृति व पहचान है, जो किसी और धर्म या संस्कृति से मेल नहीं खाती है। लेकिन सरकार के द्वारा जबरन ब्राह्मणवादी धर्म का प्रचार-प्रसार कर आदिवासियों की संस्कृति को खत्म करने की साजिश रची जा रही है। तामेश्वर सिन्हा की खबर
मिथकीय ग्रंथ रामायण में वर्णित रावण के संबंध में बौद्ध धर्म से लेकर गोंड परंपरा तक में अनेक व्याख्याएं हैं। इन व्याख्याओं के निहितार्थ व मनुवादी समाज की वैचारिकी को चुनौती देती चंद्रिकाप्रसाद जिज्ञासु की पुस्तक ‘रावण और उसकी लंका’ का पुनर्पाठ कर रहे हैं कंवल भारती
Arjak Sangh’s founder Mahamana Ramswaroop Verma had written to the then president V.V. Giri and prime minister Indira Gandhi opposing official celebrations to mark the 400th anniversary of the writing of Ramcharitmanas. He firmly believed that both Ram and Ramayan were crafted by the Brahmins to perpetuate their domination and to keep Dalitbahujans on a lower rung
अर्जक संघ के संस्थापक महामना रामस्वरूप वर्मा ने तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरि और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर रामचरितमानस चतुष्शताब्दी समारोह का विरोध किया था। वे मानते थे कि राम और रामायण के पीछे ब्राह्मणों की मंशा अपना वर्चस्व बनाए रखना तथा दलित-बहुजनों को नीच बताना था। बता रहे हैं सिद्धार्थ
आस्थावादी कहता है, जो कहा गया है, उसपर विश्वास करो। धर्मग्रंथों पर संदेह करना पाप है। आस्था जितनी ज्यादा संदेह-मुक्त हो, उतनी ही पवित्र मानी जाती है। जबकि ज्ञान की खोज बगैर संदेहाकुलता के संभव ही नहीं है। ओमप्रकाश कश्यप का विश्लेषण
Nand Kumar Baghel says that people of Tumarkhurd were against the decision of the state government to build a Ram temple. That is the reason they have erected an Ashok Stambh and laid the foundation stone of a Buddha Vihar at the place designated for the temple
नंद कुमार बघेल के अनुसार लोग राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ थे। तुमाखुर्द के जिस जगह पर राम-लक्ष्मण की मंदिर बनाने की योजना राज्य सरकार ने बनाई थी लोगों ने वहां अशोक स्तंभ स्थापित कर बौद्ध विहार का शिलालेख लगा दिया है। तामेश्वर सिन्हा की खबर
कोरोना लॉकडाउन के दौरान जेएनयू में रामायण और गीता पर वेबिनार का आयोजन किया गया। क्या यह जेएनयू की मुक्त वैचारिकी को खत्म कर इस शैक्षणिक संस्थान को हिंदू धर्म व उसके दर्शन तक सीमित करने की साजिश है? हालिया घटनाओं के मद्देनज़र नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट
भाजपा अपने दीर्घकालिक एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। ऐसा लगता है कि भाजपा अपने पितृ संगठन आरएसएस की स्थापना के सौवें वर्ष (2025) में भारत को हिन्दू राष्ट्र के तौर पर घोषित करना चाहती है। बता रहे हैं रविकांत
1968 में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता ललई सिंह ने ईवी रामासामी पेरियार की चर्चित पुस्तिका ‘रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ के नाम से प्रकाशित किया था, जिस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। ललई सिंह ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ लंबी लडाई लडी, जिसमें उनकी जीत हुई
Valmiki’s poetic creation is a portrayal of the ugly polity of his times. Society was in anarchy despite having a king. On the one hand there were rulers steeped in spirituality, neglecting material development of the State and on the other, there were hedonists who were destroying spiritual realizations
राजनीतिक सन्दर्भों में वाल्मीकि का शब्द-निरूपण तत्कालीन राज्य-व्यवस्था की विद्रूपताओं का चित्रण है, जो संकेत करता है कि राजा के होते हुए भी तत्कालीन समाज अराजक स्थिति में था। कहीं अध्यात्म में डूबे शासक राज्य की भौतिक अभिवृद्धि की उपेक्षा कर रहे थे, और कहीं चरम भोगवाद धर्म की अनुभूतियों को नष्ट कर रहा था। बता रहे हैं कंवल भारती :
Who was Ravan? Was he a Brahmin? If he was one, why is he considered a Rakshash (demon)? He is regarded as a foreigner in certain texts, whereas some ancient works say he is a Buddhist. Bahujan authors have also shared their thoughts. An analysis by Kanwal Bharti
रावण कौन था? क्या वह ब्राह्मण था और यदि वह ब्राह्मण था तब राक्षस कैसे हुआ? कुछ ग्रंथों में उसे विदेशी कहा गया। वहीं कुछ ग्रंथों में उसे बौद्ध धर्मावलम्बी भी कहा गया है। बहुजन लेखकों ने भी रावण की व्याख्या की है। विश्लेषण कर रहे हैं कंवल भारती :