जब तक पर्यावरण है तभी तक हम भी हैं और आप भी हैं और यह पूरी दुनिया है। पर उपभोक्तावादी संस्कृति हमारी धरती और हमारे पर्यावरण का विनाश कर रही है। हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को जानबूझकर काट रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और नव-उदारवादी व्यवस्था ने भोग-विलास की जिस आदत को इतनी शिद्दत से हमारे अंदर पाला-पोसा है अब वह हमें ही नष्ट करने पर आमादा है। पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत है यह आलेख :