विश्वविद्यालयों में रोस्टर सिस्टम के जरिए भर्ती होगी। इससे आरक्षित वर्ग के होनहार छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। विश्वविद्यालयों में शिक्षक-नियुक्तियों में 200 प्वाइंट पोस्ट बेस रोस्टर की बहाली की मांग को लेकर शिक्षक, राजनेता लामबंद होने शुरू हो गए हैं। दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन जारी है। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
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यह सावित्रीबाई फुले की जीवन यात्रा है जिन्हाेंने उस समय महिलाओं को शिक्षित बनाने का प्रयास किया था जब महिलाओं को घर में कैद रखा जाता था। तब उनके उपर गोबर और पत्थर फेंके जाते, लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा को निर्बाध जारी रखा व भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव और भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने एक मंच से केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। संविधान दिवस के मौके पर दोनों नेताओं ने भाजपा पर हमलावर होते हुए कहा कि वह संविधान में छेड़छाड़ करने की साजिश कर रही है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले के बाद अब बहराइच से भाजपा की सांसद सावित्री बाई फुले ने अयोध्या में बौद्ध मंदिर बनाने की मांग की है। उनकी मांग से भाजपा के हिंदूवादी एजेंडे को दलितों पर थोपने के प्रयासों को झटका लगने की संभावना तेज हो गई है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने आगामी 16 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रैली का आह्वान किया है। उनके हालिया बयानों से यह कयास लगाया जा रहा है कि वह अपने दल से विद्रोह करेंगी। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने उनसे बातचीत की और यह जानने का प्रयास किया कि आखिर वे सरकार से नाराज क्यों हैं। पढ़ें इस साक्षात्कार के संपादित अंश
अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। जाहिर तौर पर सभी अपनी-अपनी राजनीति में जुट गये हैं। पिछले चार वर्षों तक लगभग खामोश रहने वाले एनडीए के दलित मंत्रियों और सांसदों ने भी मोर्चा खोल दिया है। क्या वे ऐसा केवल अपना खूंटा मजबूत बनाये रखने के लिए कर रहे हैं? संजीव चंदन की रिपोर्ट :
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जोती राव फुले स्त्री-पुरूष सभी के लिए समान शिक्षा के हिमायती थे। वे मानते थे कि वह शिक्षा ही है जिसका उपयोग कर वर्चस्वकारी ताकतों को धुल चटाया जा सकता है। अपनी पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने शिक्षा की ऐसी ज्योति फैलायी कि बहुजन समाज में छाया अंधियारा खत्म होने लगा। जोती राव फुले को उनकी जयंती के मौके पर याद कर रहे हैं मोहनदास नैमिशराय :
Jotirao Phule was an ardent supporter for gender equality in education. He believed that education was the only weapon that could be used to neutralize the hegemonic forces. When he partnered with his wife to spread the light of education, the darkness over Bahujan society began giving way
सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा एससी/एसटी एक्ट के संदर्भ में दिये गये एक फैसले के विरोध में सत्तारूढ भाजपा में भी बगावती स्वर तेज हो गये हैं। उत्तरप्रदेश के बहराइच सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र की भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले यह मानती हैं कि वे किसी पार्टी के लिए नहीं बल्कि संविधान की रक्षा के लिए संसद में हैं। फारवर्ड प्रेस के संपादक (हिंदी) नवल किशोर कुमार ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत का संपादित अंश :
Even within the BJP, the party in power at the Centre, there are voices of disquiet about the recent decision of the Supreme Court with regard to the SC-ST Act, as this interview shows
महात्मा बुद्ध, कबीर एवं नानक के जैसे जोती राव फुले ने समाज में समानता और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार के लिए कई महत्पूर्ण पहल किया था। वे हिंदू धर्म में निहित पाखंडों की आलोचना करते थे। लेकिन उनकी आलोचना के केंद्र में कर्म और गुण महत्वपूर्ण था। बता रहे हैं श्रीभगवान ठाकुर :
Like Mahatma Buddha, Kabir and Nanak, Jotirao Phule took key initiatives to make possible a life of dignity and an egalitarian society. Phule criticised the inherent hypocrisies of Hindu society with respect to industry and goodness
महात्मा जोती राव की जन्मस्थली फ़ुलेवाड़ा हमारे लिए आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र था। वहां पहुंचकर हमने उनके जीवन संघर्ष के साक्षी रहे अवशेषों को करीब से देखा। इस यात्रा ने सुखद अनुभव दिये तो कई सवाल भी। सवाल यह कि आधुनिक भारत के निर्माता से जुड़े धरोहरों की उपेक्षा क्यों की जा रही है
At the Phules’ home and neighbourhood, we were able to see up close the physical remains of the life and struggle of the couple. The visit was immensely satisfying but we were left a little unsettled by the official apathy to preserving the place where one of the builders of modern India lived and worked