यह विचारने की जरूरत है कि आजीवक, बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित विचारों को ब्राह्मणों ने किस तरह तोड़ा-मरोड़ा है कि हमारे उत्पीड़क ही हमारे भाग्यविधाता नजर आते हैं। जबतक हम यह नहीं करेंगे तबतक बहुजनों का साहित्य आधारहीन बना रहेगा। पढ़ें रामजी यादव का यह विश्लेषण