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जब मैं यह फिल्म देख रही थी तब मेरे जेहन में डॉ. आंबेडकर के विचार चल रहे थे। स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री के रूप में उन्होंने 9 अप्रैल 1948 को संविधान सभा के समक्ष हिन्दू कोड बिल का मसविदा प्रस्तुत किया। इसमें महिलाओं के सवाल महत्वपूर्ण थे। पूनम तुषामड़ की समीक्षा
ब्राह्मणों को लगा कि उन्हें कटघरे में खड़ा किया गया है। बिहार की राजधानी पटना जहां कथित तौर पर समाजवादी विचारधारा के नीतीश कुमार की सरकार है, फ़िल्म दूसरे दिन ही हटा दी गई। दूसरी ओर प्रबुद्ध वर्ग के दलित चिंतकों ने दलित उद्धारक के रूप में ब्राह्मण नायक को महिमामंडित करने का विरोध किया। सुधा अरोड़ा की समीक्षा
Atif Rabbani reviews the film. He commends Anubhav Sinha, the director of Article 15, for the raw depiction of social realities, while arguing that the deprived themselves will have to come forward to put an end to casteism and other societal sores
लेखक आतिफ रब्बानी बता रहे हैं कि ‘आर्टिकल 15’ फिल्म के निर्देशक अनुभव सिन्हा ने समाज की सच्चाईयों को प्रस्तुत किया है। वे यह भी कहते हैं कि जातिवाद और अन्य सामाजिक विसंगतियों के खात्मे के लिए वंचितों को ही आगे आना होगा