Even Constitutional amendments, laws, judgments and government guidelines haven’t been able to turn the quotas for teachers on paper into reality as the university administration fishes for loopholes and keeps qualified SC, ST and OBC candidates out of the reckoning
संविधान संशोधन हो चुके हैं, नए कानून बनाये जा चुके हैं, अदालतें अपने फैसले सुना चुकीं हैं और सरकारें मार्ग-निर्देश जारी कर चुकी हैं। परन्तु इन सब के बाद भी, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अध्यापकों के लिए निर्धारित आरक्षण कोटा अब भी केवल कागजों पर है। विश्वविद्यालय प्रशासन एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों को बाहर रखने के लिए बहाने खोजने में अपने सिद्धस्तता का परिचय देता रहा है। बता रहे हैं अनिल वर्गीज
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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने बीपीएससी से दस दिनों के अंदर जवाब मांगा है। इसका सबब यह कि इस वर्ष बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर हुई नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों की अनदेखी के मामले प्रकाश में आए हैं। आरटीआई के द्वारा मांगी गयी जानकारी भी बीपीएससी को कटघरे में खड़ा करती है। रामकृष्ण यादव की रिपोर्ट
दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ में ही केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रिक्त पड़ी नियुक्तियों को भरने के लिए स्पेशल ड्राइव चलाया है। लेकिन इसके साथ ही विश्वविद्यालय अपनी ओर से योग्य अभ्यर्थियों को रोकने के लिए नई तरकीबें भी इजाद कर रहे हैं
P.N. Sankaran writes that university faculties in India suffer from a lack of social diversity and the cure is the wholehearted implementation of reservation in all levels of university teaching positions
पी. एन. संकरण लिखते हैं कि भारतीय विश्वविद्यालयों के विभाग सामाजिक विविधता की कमी से ग्रस्त हैं। इसका एकमात्र समाधान आरक्षण को उनके सभी शैक्षिक पदों पर पूरी संवेदनशीलता के साथ लागू करने में है
Different universities have advertised vacancies for assistant and associate professors. Under the rules, marks are awarded to the candidates on the basis of the number of their research papers published in approved journals. The UGC has clarified that the papers published up to 2 May 2018 in journals figuring in the old list will continue to be valid
विभिन्न विश्वविद्यालयों में अस्टिटेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्तियां की जा रही हैं। प्रावधानों के मुताबिक मान्यता प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं में शोध लेख प्रकाशित होने पर अभ्यर्थियों को अंक दिए जाते हैं। यूजीसी ने स्पष्ट किया है कि उसकी पुरानी सूची में शामिल पत्रिकाओं में 2 मई, 2018 से पहले प्रकाशित लेख मान्य रहेंगे
राज्य सरकार के नियम के मुताबिक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी यदि मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में अपनी जगह बनाते हैं तब उनकी नियुक्ति अनारक्षित कोटे में ही होगी। लेकिन आयोग द्वारा जारी परिणाम में इस नियम को दरकिनार कर सवर्णों को 50 फीसदी आरक्षण दे दिया गया है
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
हाल के दिनों में कई ऐसी खबरें आई हैं जिनमें असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर बहाली हेतु नियमों में बदलाव की बात कही गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसके लिए स्नातकोत्तर में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंक और नेट उत्तीर्णता की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सहमति के बाद विरोध के स्वर तेज होने पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। लेकिन अब वह इस फैसले को बदलने के लिए अध्यादेश लाने जा रही है। वहीं कानून मंत्रालय ने ओबीसी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
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झारखंड में करीब एक दशक बाद असिस्टेंट प्रोफेसर के रिक्त पड़े पदों के लिए बहाली प्रक्रिया शुरू तो हुई है, लेकिन यह बहाली 1980 में सृजित पदों के अनुसार ही होगी। जबकि पिछले 10 सालों में झारखंड की शिक्षा में काफी बदलाव आया है। वोकेशनल कोर्स के लिए एक भी शिक्षक की नियुक्ति के लिए वेकेंसी नहीं निकाली गयी है, इसके कारण वोकेशनल कोर्स के शिक्षकों में निराशा है। इसके अलावा विशद कुमार दे रहे हैं आवेदन करने संबंधी पूरी जानकारी
Any domicile policy that discriminates against residents of other states goes against the grain of Indian federalism. Moreover, if Bihar implements a domicile policy, it may affect other states too
भारत राज्यों का एक संघ है। अपवादों को छोड़कर यहाँ का नागरिक भारत के किसी भी हिस्से में जाकर अपना जीवन यापन कर सकता है। यानी किसी भी राज्य में जाकर सरकारी या प्राइवेट नौकरी करने को स्वतंत्र है। डोमिसाईल जैसी नीति, जो अन्य प्रदेशों के छात्रों के साथ भेदभाव पूर्ण रवैय्या अपनाता है, भारतीय संघवाद की आत्मा के खिलाफ है। बिहार में डोमिसाईल नीति लागू होने का असर अन्य राज्यों पर भी पड़ सकता है