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यह कांशीराम के सतत आंदोलन का ही परिणाम था कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान अपने हक-हुकूक के लिए जागरूक हुए। जब यह आंदोलन चल रहा था तब लोगों का नारा था – ‘कांशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।’
कांशीराम का जीवन स्वयं में एक आंदोलन है। एक ऐसा आंदोलन जिसने उत्तर भारत के बहुजनों की सोच को नया आयाम दिया। उन्हें ताकत दी और बताया कि 85 फीसदी बहुजन कैसे इस देश के संसाधनों पर अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। उनके जीवन और योगदान के बारे में बता रहे हैं अलख निरंजन
Kanshi Ram believed that by forcing Ambedkar to sign the Poona Pact on 24 September 1932, Gandhi pushed the Untouchables into the ‘Chamcha Yug’ (the era of stooges). Kanshi Ram’s only book, Chamcha Yug, dwells on the nature and the form of the post-Poona-Pact Dalit politics. Alakh Niranjan throws light on the significance of this book
कांशीराम का मानना था कि 24 सितंबर 1932 को गांधी ने आंबेडकर को पूना पैक्ट के लिए बाध्य करके अनुसूचित जातियों की राजनीति को चमचा युग में ढकेल दिया। कांशीराम की एकमात्र किताब चमचा युग पूना पैक्ट के बाद की दलित राजनीति के चरित्र को सामने लाती है। इस किताब की महत्ता पर रोशनी डाल रहे हैं, अलख निरंजन
एच. एल. दुसाध बता रहे हैं कांशीराम के सपने और उनके संघर्ष के बारे में। उनके मुताबिक यदि आज कांशीराम होते तो बहुजनों को धन-धरती का मालिक बनाने के अपने सपने को पूरा कर रहे होते
सुशील मानव बता रहे हैं कि कैसे गांवों में आंबेडकरवादी लहर फैल रही है। लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हो रहे हैं। उनके मुताबिक, हाल के वर्षों में दलित और पिछड़े समाज के लोगों में एकता बनी है
इस काल्पनिक पत्र के माध्यम से सिद्धार्थ बता रहे हैं कि कांशीराम के अनुसार राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का
राजनीति में वैचारिक स्पष्टता जरूरी है। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार के साथ प्रकाश आंबेडकर की विस्तृत बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि बसपा और बामसेफ की राजनीति शुरू से ही फेल थी। ये दोनों आंबेडकराइट आइडियोलॉजी से कभी जुड़े नहीं। प्रस्तुत है इस लंबेी बातचीत का संपादित अंश
हम हिंदू नहीं हैं, हम भील और गोंड भी नहीं हैं। हम आदिवासी हैं। सरकार 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड और कॉलम निर्धारित करे। यह मांग 25 फरवरी 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकजुट हुए आदिवासियों ने की। इस मौके पर बामसेफ के खिलाफ भी आवाज उठी
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
आगामी 9 दिसंबर 2018 को शिवपाल यादव और वामन मेश्राम ने संयुक्त रूप से लखनऊ में महारैली का आह्वान किया है। इसके लिए जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :
वामन मेश्राम के मुताबिक, जनता के पास विरोध, असहमति और उसका इजहार करने का मौलिक अधिकार संविधान के आर्टिकल-19 के तहत दिया गया है। मगर, गुजरात सरकार संविधान तक का ख्याल नहीं रख रही है और दमनकारी नीति के तहत जन-विद्रोह को दबाने का काम कर रही है। फारवर्ड प्रेस की खबर :