एक बंधुआ मजदूर वे भी होते हैं जो सूदखोरों के हत्थे नहीं चढ़ते, लेकिन ब्राह्मणवादी व्यवस्था उन्हें बंधुआ मजदूर बना देती है। इसी तरह की एक कहानी ‘दहेज में आए कोरोना में गए’ डॉ. रजत रानी मीनू की है, जो हंस पत्रिका के जनवरी, 2021 अंक में प्रकाशित हुई। बता रहे हैं अनुज कुमार