मंगलेश डबराल टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव से आए थे। इसलिए उनकी कविताओं में पहाड़ अपनी घनी अनुभूतियों के साथ आए हैं, जिनमें दंत कथाएं हैं, मां हैं, पिता हैं, दादा हैं, बारिश है, सपने हैं, पर पहाड़ों पर डोम भी होते हैं, वे उनकी अनुभूतियों में नहीं आते। कभी वास्ता भी नहीं रखा होगा, डोमों से, फिर स्मृतियों में भी कैसे आएंगे? कंवल भारती द्वारा मंगलेश डबराल की कविताओं का पुनर्पाठ