आखिर क्या कारण है कि सवर्ण समाज के लोग चाहे जितना भी आधुनिक हो जाएं, लेकिन जातिगत दंभ से मुक्त नहीं हो पाते? अजय नावरिया की कहानी ‘संक्रमण’ इसी सवाल के जवाब की तलाश करती है। बता रही हैं ज्योति पासवान
–
अमर शहीद जगदेव प्रसाद मानते थे कि “ऊंची जाति वाले आर्थिक सुधार के कुछ हद तक पक्षपाती परिस्थिति के दबाव के कारण होते नजर आते हैं, लेकिन वे सामाजिक क्रांति के कट्टर विरोधी हैं”
जब संसद में हमारा बहुमत होगा तो संविधान में क्रांतिकारी संशोधन करके 90 प्रतिशत सैकड़ा शोषितों की तरक्की के लायक संविधान बना देंगे। अमेरिकी अर्थशास्त्री डॉ. एफ. टॉमसन द्वारा जगदेव प्रसाद का महत्वपूर्ण साक्षात्कार
कंवल भारती के मुताबिक, माता प्रसाद द्वारा रचित काव्य ‘एकलव्य’ में भील समुदाय एकलव्य के साथ द्रोणाचार्य के द्वारा किए गए पक्षपात को अपना अपमान समझता है, और वह इसका बदला कृष्ण का वध करके लेता है। इसके बावजूद उनका उपचार गांधीवादी है।
मोहन भागवत से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि यदि हिंदू कभी देशविरोधी नहीं हो सकता, तो असीम त्रिवेदी और कन्हैया कुमार को देशद्रोह की धारा में क्यों गिरफ्तार किया गया था? क्या वे हिंदू नहीं हैं? कंवल भारती का विश्लेषण
भारतीय जेल संविधान के आधार पर कार्य करने वाली संस्थान है। वही संविधान जिसमें समता का अधिकार सुनिश्चित है। परंतु संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी भारतीय जेलों में मनुवादी जाति व्यवस्था कायम है
उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में मनुस्मृति दहन दिवस का आयोजन किया गया। इस मौके पर दलित-बहुजन लोगों ने मनुस्मृति के साथ ही केंद्र सरकार के उन कानूनों की प्रतियां जलाईं जिनसे इन वर्गों के लोगों का अहित होता है। इनमें तीन कृषि कानून भी शामिल रहे। विशद कुमार की खबर
पेरियार ने गांधी से कहा, “हिंदू धर्म की मदद से स्थायी और बड़ा कर पाना आपके लिए संभव नहीं है। ब्राह्मण आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देंगे। यदि आपने उनके हितों के विरुद्ध कुछ भी किया तो वे आपके खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे।” ओमप्रकाश कश्यप की प्रस्तुति
शूद्र सेवा करें और चुपचाप सहें। महिलाएं बच्चा पैदा करें और घर में खप जाएं। इसीलिए भारत में हनुमान मंदिरों की बहुतायत है क्योंकि शक्ति में विराट लेकिन विवेकशून्य सेवक ब्राह्मणवादी व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण है। रामजी यादव का विश्लेषण
जब भारत का संविधान अनुच्छेद 25 यह आजादी देता है कि व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी धर्म चुन सकता है, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के दिमाग में धर्म-परिवर्तन के खिलाफ उल्लू कैसे बैठ गया? संविधान की शपथ खाकर पदासीन कैबिनेट ने संविधान-विरोधी इस अध्यादेश को पास कैसे कर दिया? इसके पीछे सरकार की मंशा दलितों को दलित बनाए रखने की है। बता रहे हैं कंवल भारती