युवा आदिवासी नेता व विधायक डा. हिरालाल अलावा ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर किया है। उनका कहना है कि अनुसूचित क्षेत्र में पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून का पालन नहीं होने से आदिवासियों का विकास नहीं हो सका है। राजन कुमार की खबर
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के सन्दर्भ में दिए गए फैसले का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक दुष्प्रभाव समाज के कमजोर और उपेक्षित वर्गों के ऊपर सीधे तौर पर पड़ेगा। यह फैसला संविधान की मूल भावना का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन करता है। ओमप्रकाश कश्यप का विश्लेषण
लेखक हेसूस याचरेज बता रहे हैं कि आखिर आंबेडकर को हमेशा केवल संविधान के साथ ही क्यों दिखाया जाता है। उनके हाथों में कभी ‘जाति का विनाश’ या ‘बुद्ध और उनका धम्म’ क्यों नहीं होती?
It is strange that Ambedkar is depicted holding the Constitution and not, for instance, ‘Annihilation of Caste’ or ‘The Buddha and his Dhamma’
भारतीय संविधान में आदिवासी हिंदू की श्रेणी में रखे गए हैं। परंतु कानूनों में प्रावधान अलग हैं। इसका खामियाजा आदिवासियों को उठाना पड़ता है
बहुजन चिंतक कांचा आयलैया शेफर्ड मानते हैं कि यदि जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए, तो आरक्षण की आवश्यकता केवल 30 वर्षों तक होगी। फिर समाज में बराबरी सुनिश्चित हो जाएगी। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत का संपादित अंश
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics