जिस वैकल्पिक संस्कृति की बात डॉ. आंबेडकर कर रहे थे, वह अभी पूरी तरह से हर समुदाय में नहीं पहुंची है। लेकिन बदलाव की आहट तो आ ही चुकी है। जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में भी अब विभिन्न समुदायों के लोग शादियों में ब्राह्मण पुरोहित के बजाय अपने हिसाब से ‘लगन’ तय कर रहे हैं। पढ़ें, साप्ताहिक स्तंभ ‘बहस-तलब’ के तहत विद्या भूषण रावत का यह आलेख